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जैन आगमों की कथाएँ ६५ मनु को ऐतिहासिक व्यक्ति माना गया है । भगवद्गीता में भी मनुओं का उल्लेख है।
___ चतुर्दश मनुओं का काल-प्रमाण सहस्र युग माना गया है । . कुलकर-कथा
आगम-साहित्य में जहाँ कुलकरों के नामों का निर्देश है, वहाँ उसके व्याख्या-साहित्य में और स्वतन्त्र ग्रन्थों में उस समय की परिस्थिति का भी चित्रण किया गया है। हम यहाँ अधिक विस्तार में न जाकर संक्षेप में ही यतिवृषभ ने तिलोयपण्णत्ति ग्रन्थ में जो चित्रण प्रस्तुत किया है, वह यहाँ दे रहे हैं; जिससे जिज्ञासुओं को परिज्ञान हो सके।
सर्वप्रथम मानवों ने अनन्त आकाश में जब चन्द्र और सूर्य को देखा तो भय से काँप उठे। वे सोचने लगे कि आपत्तियों की घनघोर घटाएँ मँडराने वाली हैं। उन भयभीत मानवों को 'प्रतिश्रुत' नामक प्रथम कुलकर ने आश्वस्त करते हुए कहा-ये चन्द्र और सूर्य नये उदित नहीं हुए हैं। ये तो प्रतिदिन इसी तरह से उदित और अस्त होते हैं किन्तु तेजांग जाति के अत्यन्त प्रकाशपूर्ण कल्पवृक्षों के कारण हम इन्हें देख नहीं पाते थे, अब तेजांग नामक कल्पवृक्षों का दिव्य आलोक मन्द हो रहा है, जिससे हमें चन्द्र और सूर्य दिखाई दे रहे हैं, अतः भयभीत होने की आवश्यकता नहीं। जन-मानस के भय को नष्ट करने से वह कुलकर कहलाया ।
प्रतिश्र त कुलकर के देहावसान के पश्चात् तेजांग नाम के कल्पवृक्ष पूर्ण रूप से नष्ट हो गये थे जिससे गहन अन्धकार मँडराने लगा और अन्धकार होने से आकाश-मण्डल में असंख्य तारे जगमगाते हुए दिखाई देने लगे । मानवों ने सर्वप्रथम ताराओं को देखा तो उनका हृदय भावी आशंका से काँप उठा । 'सन्मति' कूलकर ने उन मानवों को आश्वस्त करते हुए कहा-आप भयभोत न हों, तेजांग नामक कल्पवृक्षों के नष्ट हो जाने से रात्रि में अन्धकार का साम्राज्य होने से तारा-मण्डल दिखाई दे रहा है। यह पहले भी था, पर प्रकाश के कारण दिखाई नहीं देता था। सन्मति के कहने से लोगों को ढाढस बँधा और वह कुलकर के रूप में विश्र त हुआ।
१. भगवद् गीता; १०/६. २. (क) भागवत, स्कन्ध ८, अध्याय १४.
(ख) हिन्दी विश्वकोष, १६वाँ भाग, पृ० ६४८ से ६५५. ३. तिलोयपण्णत्ति महाधिकार, गाथा ४२१-५०६.
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