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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
अन्यत्र चौदह मनुओं के भी नाम प्राप्त होते हैं। वे इस प्रकार हैं१. स्वायम्भुव २. स्वारोचिष ३. ओत्तमि ४. तापस ५. रैवत ६. चाक्षुष ७. वैवस्वत ८. सावणि ६. दक्षसावणि १०. ब्रह्मसावणि ११. धर्मसावणि १२. रुद्रसावणि १३. रोच्यदेवसावणि १४. इन्द्रसावर्णि।
मत्स्य पुराण, मार्कण्डेय पुराण, देवी भागवत् और विष्णुपुराण प्रभृति ग्रन्थों में भी स्वायम्भुव आदि चौदह मनुओं के नाम प्राप्त हैं । वे इस प्रकार हैं :
१. स्वायंभुव २. स्वारोचिष ३. औत्तमि ४. तापस ५. रैवत ६. चाक्षुष. ७. वैवस्वत ८. सावणि ६ रोच्य १०. भौत्य ११. मेरुसावणि १२. ऋभु १३ ऋतुधामा १४. विश्वकसेन ।
मार्कण्डेय पुराण में वैवस्वत के पश्चात् पाँचवाँ सावर्णि, रोच्य और भौत्य आदि सात मनु और माने हैं।
श्रीमद्भागवत् में उपर्युक्त सात नाम वे ही हैं, आठवें नाम से आगे के नाम पृथक् हैं । वे इस प्रकार हैं :-८. सावणि ६. दक्षसावणि १०. ब्रह्मसावणि ११. धर्मसावणि १२. रुद्रसावणि १३. देवसावणि १४. इन्द्रसावर्णि।
- मनु को मानव जाति का पिता व पथप्रदर्शक व्यक्ति माना है। पुराणों के अनुसार मनु को मानव जाति का गुरु तथा प्रत्येक मन्वन्तर में स्थित कहा है । वह जाति के कर्तव्य का ज्ञाता था । वे मननशील और मेधावी व्यक्ति रहे हैं। वह व्यक्ति विशेष का नाम नहीं, किन्तु उपाधि वाचक हैं। यों मनु शब्द का प्रयोग ऋग्वेद, अथर्ववेद, तैत्तिरीय' संहिता, शतपथ ब्राह्मण, जैमिनीय उपनिषद् में हुआ है, वहाँ १. (क) मोन्योर-मोन्योर विलियम : संस्कृत इंगलिश डिक्शनरी, पृ०७८४.
(ख) रघुवंश १/११२. मत्स्य पुराण, अध्याय ६ से २१. ३. मार्कण्डेय पुराण ४. श्रीमद्भागवत्, ८/५ अ ५. ऋग्वेद, १/८०, १६; ८/६३, १; १०. १००/५. ६. अथर्ववेद, १४/२, ४१. ७. तैत्तिरीय संहिता, १/५, १.३; ७/५, १५, ३, ६,७,१; ३,३, २,१; ५/४, १०,
५; ६/६, ६,१, का सं० ८१५, ८. शतपथ ब्राह्मण, १/१,४/१४ ६. जैमिनीय उपनिषद् , ३/१५,२
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