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________________ जैन आगमों की कथाएँ ६३ पाँचवे सीमंकर और छठे सीमंधर इस प्रकार कुछ व्युत्क्रम से संख्या दी है। विमलवाहन के आगे के दोनों ग्रन्थों में (पउमचरियं और महापुराण) नाम समान मिलते हैं । जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में इन चौदह नामों के साथ ऋषभ को जोड़कर पन्द्रह कुलकर बताये हैं। इस तरह अपेक्षादृष्टि से कुलकरों की संख्या में मतभेद हुआ है । चौदह कुलकरों में पहले के छह और ग्यारहवाँ चन्द्राभ के अतिरिक्त सात कुलकरों के नाम स्थानांग आदि के अनुसार ही हैं। जिन ग्रन्थों में छह कुलकरों के नाम नहीं दिये गये हैं, उसके पीछे हमारी दृष्टि से वे केवल पथ-प्रदर्शक रहे होंगे, उन्होंने दण्ड-व्यवस्था का निर्माण नहीं किया । इसलिए उन्हें गौण मानकर केवल सात ही कुलकरों का उल्लेख किया गया हो। भगवान् ऋषभदेव प्रथम सम्राट हुए और उन्होंने यौगलिक स्थिति को समाप्त कर कर्म-भूमि का प्रारम्भ किया था। इसलिए उन्हें कुलकर न माना हो । जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में उन्हें कुलकर लिखा है । सम्भव है, मानव समूह के अर्थ में कुलकर शब्द व्यवहृत हुआ हो। कितने ही आचार्य इस संख्या भेद को वाचनाभेद मानते हैं। वैदिक परम्परा में कुलकर का स्वरूप ___ कुलकर के स्थान पर वैदिक परम्परा के ग्रन्थों में मनु का उल्लेख हुआ है। आदिपुराण और महापुराण में कुलकरों के स्थान पर मनु शब्द आया है । स्थानांग आदि की भांति मनुस्मृति में भी सात महातेजस्वी मनुओं का उल्लेख है। उनके नाम इस प्रकार हैं-१. स्वयंभू २. स्वारोचिष ३. उत्तम ४. तामस ५. रेवत ६. चाक्षुष ७. वैवस्वत । १. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, व०२, सूत्र २६, २. ऋषभदेव : एक परिशीलन, पृ० १२०. ३. आदिपुराण, ३/१५. ४. महापुराण, ३/२२६, पृष्ठ ६६. ५. स्वायम्भुवस्यास्य मनो: षड्वश्या मनवोऽपरे । सृष्टवन्तः प्रजाः स्वाः स्वाः, महात्मानो महौजसः । स्यारोचिषश्चोत्तमश्च, तामसो रैवंतस्तथा । चाक्षुषश्च महातेजा, विवस्वत्सुत एव च ॥ स्वायम्भुवाद्याः सप्तैते, मनवो भूरितैजसः । स्वे स्वेऽन्तरे सर्वमिदमुत्पाद्यापुश्चराचरम् ।। -मनुस्मृति १/६१-६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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