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________________ जैन आगमों की कथाएँ ५७ माना है । टीकाकार श्री हरिभद्र ने मतान्तर का उल्लेख करते हुए आचार आदि को शास्त्रवाचक भी माना है। स्थानांग में आक्षेपणी कथा के जो चार प्रकार बताये हैं, जिनका उल्लेख नियुक्ति की प्रस्तुत गाथा में हुआ है। आचार्य अभयदेव ने मतान्तर का जो उल्लेख किया है वह आचार्य हरिभद्र के शब्दों में ही किया है। विक्षेपणी कथा के भी चार प्रकार हैं-१. सम्यग्दृष्टि व्यक्ति स्वयं के सिद्धान्त का प्रतिपादन कर फिर दूसरों के सिद्धान्त का प्रतिपादन करता है। २. दूसरों के सिद्धान्त का प्रतिपादन करने के पश्चात् अपने सिद्धान्त की संस्थापना करता है। ३. सम्यग्वाद का प्रतिपादन करने के पश्चात् मिथ्यावाद का प्रतिपादन करता है। ४ मिथ्यावाद का प्रतिपादन कर पुनः सम्यग्वाद की स्थापना करता है। विक्षेपणी कथा की परिभाषा में टीका ग्रन्थों में कोई भिन्नता नहीं है। संवेदनी कथा के भी चार प्रकार बताये हैं-१. इहलोक संवेदनीमानव जीवन की असारता प्रदर्शित करने वाली कथा। २. परलोक संवेदनी -देव, तिर्यंच आदि के जन्मों की मोहमयता व दुःखमयता प्रदर्शित करने वाली कथा। ३. आत्म-शरीर संवेदनी-अपने शरीर की अशुचिता का प्रतिपादन करने वाली कथा। ४. पर-शरीर संवेदनी-दूसरे के शरीर की अशुचिता का प्रतिपादन करने वाली कथा । स्थानांगवृत्तिकार ने संवेदनी कथा की जो व्याख्या की है, वह व्याख्या दशवैकालिकनियुक्ति और मूलाराधना' की व्याख्या से पृथक है। उनके अभिमतानुसार इस कथा में वैक्रिय-शुद्धि तथा ज्ञान, दर्शन और चारित्र की शुद्धि का कथन होता है। अणिमा, महिमा आदि का नाम १. दशवैकालिकनियुक्ति हरिभद्रीयावृत्ति, पृ० ११० २. आयारअक्खेवणी ववहारअक्खेवणी पन्नत्तिअक्खेवणी दिवातअक्खेवणी। -ठाणांग, ४२४७ ३. स्थानांग, ४/२४८ ४. वीरिय विउगिड्ढी, नाण-चरण-दसणाण तह इड्ढी । उवइस्सइ खलु जहियं, कहाइ संवेयणीइ रसो।। -दशवैकालिक नियुक्ति, गाथा २०० ५. संवेयणी पुण कहा, णाण चरित्त तव वीरिय इड्ढिगदा । -मूलाराधना ६५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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