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जैन आगमों की कथाएँ
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का सहारा लिया । और कथाओं के माध्यम से वे दार्शनिक गूढ़ गुत्थियों को सहज रूप से सुलझाने में सफल भी हुए । जैन कथा-साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसमें सत्य, अहिंसा, परोपकार, दान, शील आदि सद्गुणों की प्रेरणायें सन्निहित हैं । कथा एक ऐसा माध्यम है जिससे विषय सहज ही हृदयंगम हो जाता है । इसलिए अन्य अनुयोगों की अपेक्षा यह अनुयोग अधिक लोकप्रिय हुआ और यही कारण है कि दिगम्बर मनीषियों ने इसे प्रथमानुयोग की संज्ञा प्रदान की। मानव के सम्पूर्ण जीवन को उजागर करने वाली परम पुनीत भावनाएँ इस अनुयोग में मुखरित हुई
स्थानांग सूत्र में पहले विकथाओं का निरूपण किया गया है, वे हैंस्त्रीकथा, देशकथा, भक्तकथा और राजकथा ।1 उनके भेद-प्रभेदों का निरूपण करके शास्त्रकार ने साधकों को संकेत किया है कि उनसे बचें । वे कथाएँ जीवन में विकृति उत्पन्न करती हैं, इसलिए उन्हें विकथा कहा गया है। उसके पश्चात् कथा के चार प्रकार बताये हैं---१. आक्षेपणी-वह कथा जो ज्ञान और चारित्र के प्रति आकर्षण पैदा करती हो । २. विक्षेपणी-वह कथा जो सन्मार्ग की स्थापना करती हो । ३. संवेदनी-वह कथा जो जीवन की नश्वरता, दुःख-बहुलता और शरीर की अशुचिता दिखाकर वैराग्य उत्पन्न करती हो । ४. निवेदनी-वह कथा जो कृत कर्मों के शुभाशुभ फल को दिखाकर संसार के प्रति उदासीन बनाती हो। ___आक्षेपणी कथा के चार प्रकार हैं । वे ये हैं-१. आचार आक्षेपणी -जिसमें आचार का निरूपण हो । २. व्यवहार आक्षेपणी--जिसमें व्यवहार अर्थात् प्रायश्चित्त का निरूपण हो । ३. प्रज्ञप्ति आक्षेपणी -जिसमें संशयग्रस्त श्रोता को समझाने का निरूपण हो। ४. दृष्टिपात आक्षेपणीजिसमें श्रोता की योग्यता के अनुसार विविध नय दृष्टियों से तत्त्व-निरूपण हो ।
प्रस्तुत कथा चतुष्टय की परिभाषा दशवैकालिकनियुक्ति,
१. स्थानांग, ४/२४१-२४५, पृ० ३४६. २. चउव्विहा कहा पण्णत्ता-तं जहा-अक्खेवणी, विक्खेवणी, संवेयणी, णिव्वेदणी।
---स्थानांग-४/२४६. ३. अक्खेवणी कहा चउव्विहा पण्णत्ता...
-स्थानांग-४/२४७. ४. दशवकालिकनियुक्ति, गाथा १६५-२०१
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