________________
५२
जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
बन्ध-मोक्ष आदि तत्त्वों को दीपक के सदृश प्रकट करता है, वह द्रव्यानुयोग है | जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने विशेषावश्यकभाष्य में लिखा है - द्रव्य का द्वव्य में, द्रव्य के द्वारा अथवा द्रव्य हेतुक जो अनुयोग होता है, उसका नाम द्रव्यानुयोग है । इसके अतिरिक्त द्रव्य का पर्याय के साथ अथवा द्रव्य का द्रव्य के ही साथ जो योग ( सम्बन्ध ) होता है, वह भी द्रव्यानुयोग है । इसी तरह बहुवचन - द्रव्यों का द्रव्यों में भी समझना चाहिए ।
आगम - साहित्य में कहीं संक्षेप से और कहीं विस्तार से इन अनुयोगों का वर्णन है । आर्य वज्र तक आगमों में अनुयोगात्मक दृष्टि से पृथकता नहीं थी । प्रत्येक सूत्र की चारों अनुयोगों द्वारा व्याख्या की जाती थी । आचार्य भद्रबाहु ने इस सम्बन्ध में लिखा है - कालिक श्रत अनुयोगात्मक व्याख्या की दृष्टि से अपृथक् थे। दूसरे शब्दों में यों कह सकते हैंउनमें चरणकरणानुयोग प्रभृति अनुयोगचतुष्टय के रूप में अविभक्तता थी । आर्य वज्र के पश्चात् कालिक श्रुत और दृष्टिवाद की अनुयोगात्मक पृथक्ता ( विभक्तता) की गई ।
आचार्य मलयगिरि ने प्रस्तुत विषय को स्पष्ट करते हुए लिखा हैआर्य वज्र तक श्रमण तीक्ष्ण बुद्धि के धनी थे, अतः अनुयोग की दृष्टि से अविभक्त रूप से व्याख्या प्रचलित थी । प्रत्येक सूत्र में चरणकरणानुयोग आदि का अविभागपूर्वक वर्तन था । मुख्यता की दृष्टि से नियुक्तिकार ने यहाँ
१. जीवाजीवसुतत्त्वे पुण्यापुण्ये च बन्ध-मोक्षौ च । द्रव्यानुयोग- दीप: श्रुतिविद्या लोकमातनुते ||
--रत्नकरण्ड श्रावकाचार, ४६.
२. दव्वस्स जोऽणुओगो दव्वे दव्वेण दव्वहेऊ वा । दव्वस्स पज्जवेण व जोगो, दव्वेण वा जोगो ॥ बहुवण ओवि एवं नेओ जो वा कहे अणुवउत्तो । दव्वाणुओग एसो..........
विशेषावश्यक भाष्य, १३६८-६६
३. जावंत अज्जवइरा अपुहुत्त कालिआणुओगस्स | तेणारेण पुहुत्तं कालिअसुइ दिट्ठिवाए अ ||
Jain Education International
- आवश्यक नियुक्ति मलयगिरि वृत्ति, गाथा १६३, पृ० ३८३.
४. आवश्यक नियुक्ति, पृ० ३८३, प्रका. आगमोदय समिति
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org