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जैन आगमों की कथाएँ ५१
गार धर्मामृत टीका आदि में भी चरणानुयोग की परिभाषा इसी प्रकार मिलती है । आचार सम्बन्धी साहित्य चरणानुयोग में आता है । धर्मकथानुयोग भी प्रथमानुयोग
जिनदास गणि महत्तर ने धर्मकथानुयोग की परिभाषा करते हुए • लिखा है -- सर्वज्ञोक्त अहिंसा आदि स्वरूप धर्म का जो कथन किया जाता है, अथवा अनुयोग के विचार से जो धर्म सम्बन्धी कथा कही जाती है, वह धर्मकथा है । आचार्य हरिभद्र ने भी अनुयोगद्वार की टीका में अहिंसा लक्षण युक्त धर्म का जो आख्यान है, उसे धर्मकथा कहा है । महावि पुष्पदन्त' ने भी लिखा है - जो अभ्युदय, निःश्रेयस् की संसिद्धि करता है और धर्म से जो निबद्ध है, वह सद्धर्मकथा है । धर्मकथानुयोग को ही दिगम्बर परम्परा में प्रथमानुयोग कहा है । रत्नकरण्ड श्रावकाचार' में लिखा है- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का परमार्थ ज्ञान सम्यग्ज्ञान है, जिसमें एक पुरुष या त्रिषष्टि श्लाघनीय पुरुषों के पवित्र चरित्र में रत्नत्रय और ध्यान का निरूपण है, वह प्रथमानुयोग है ।
गणितानुयोग, गणित के माध्यम से जहाँ विषय को स्पष्ट किया जाता है, वह है । दिगम्बर परम्परा में इसके स्थान पर करणानुयोग यह नाम प्रचलित है । करणानुयोग का अर्थ है - लोक - अलोक के विभाग को, युगों के परिवर्तन को तथा चारों गतियों को दर्पण के सदृश प्रगट करने वाले सम्यग्ज्ञान को करणानुयोग कहते हैं । " करण शब्द के दो अर्थ हैं ( १ ) परिणाम और ( २ ) गणित के सूत्र ।
द्रव्यानुयोग -- जो श्रुतज्ञान के प्रकाश में जीव- अजीव, पुण्य-पाप और
१. सकलेतर चारित्र - जन्म रक्षा विवृद्धिकृत् ।
- अनगार धर्मामृत, ३/११. पं. आशाधरजी २. धम्मका नाम जो अहिंसादिलक्खणं सव्वगुपणीयं धम्मं अणुयोगं वा कहेइ - दशवेकालिकचूणि, पृ० २६. - अनुयोगद्वार टीका, पृ० १०.
एसा धम्मका ।
३. अहिंसा लक्षण धर्मान्वाख्यानं धर्मकथा । ४. यतोऽभ्युदयनिःश्रेयसार्थ-संसिद्धिरंजसा । सद्धर्मस्तन्निबद्धा या सा सद्धर्मकथा स्मृता ॥
५. रत्नकरण्ड श्रावकाचार ४३.
रत्नकरण्ड श्रावकाचार ४४.
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- महापुराण, महाकवि पुष्पदन्त, १/१२०.
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