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जैन-आगमों की कथाएँ ४६ भाग की गण्डिका सदृश एकार्थ का अधिकार यानि ग्रन्थ-पद्धति । गण्डिकानुयोग के अनेक प्रकार हैं।
(१) कुलकर गंडिकानुयोग-विमलवाहन आदि कुलकरों की जीवनियाँ ।
(२) तीर्थंकर गंडिकानुयोग-तीर्थंकर प्रभु की जीवनियाँ । (३) गणधर गंडिकानुयोग-गणधरों की जीवनियाँ ।
(४) चक्रवर्ती गंडिकानुयोग-भरतादि चक्रवर्ती राजाओं की जीवनियाँ ।
(५) दशार्ह गंडिकानुयोग-समुद्रविजय आदि दशाहों की जीवनियाँ । (६) बलदेव गंडिकानुयोग-राम आदि बलदेवों की जीवनियाँ । (७) वासुदेव गंडिकानुयोग--कृष्ण आदि वासुदेवों की जीवनियाँ ।
(८) हरिवंश गंडिकानुयोग-हरिवंश में उत्पन्न महापुरुषों की जीवनियाँ ।
(8) भद्रबाह गंडिकानयोग-भद्रबाहु स्वामी की जीवनी । (१०) तपकर्म गंडिकानुयोग-तपस्या के विविध रूपों का वर्णन ।
(११) चित्रान्तर गंडिकानुयोग-भगवान् ऋषभ तथा अजित के अन्तर समय में उनके वंश के सिद्ध या सर्वार्थसिद्ध में जाते हैं, उनका वर्णन ।
(१२) उत्सर्पिणी गंडिकानुयोग-उत्सर्पिणी का विस्तृत वर्णन । (१३) अवसर्पिणी गंडिकानुयोग–अवसर्पिणी का विस्तृत वर्णन ।
देव, मानव, तिर्यंच और नरक गति में गमन करना, विविध प्रकार से पर्यटन करना आदि का अनुयोग 'गंडिकानुयोग' में हैं । जैसे वैदिक परंपरा में विशिष्ट व्यक्तियों का वर्णन पुराण साहित्य में हुआ है, वैसे ही जैन परम्परा में महापुरुषों का वर्णन गंडिकानुयोग में हुआ है । गंडिकानुयोग की रचना समय-समय पर मूर्धन्य मनीषी तथा आचार्यों ने की । पंचकल्प चूर्णी के अनुसार कालकाचार्य ने गंडिकाएँ रची थीं, पर उन गंडिकाओं को संघ ने स्वीकार नहीं किया। आचार्य ने संघ से निवेदन किया-मेरी गंडिकाएँ क्यों स्वीकृत नहीं की गई हैं ? उन गण्डिकाओं में रही हुई त्रुटियों
१. से कि तं गंडिया गुयोरे ? गंडियाणुयोगे अणेगविहे पण्णत्ते .........
-श्री समवायांगवृत्ति, पृ० १२० २. पञ्चकल्प णि-कालकाचार्य प्रकरण, पृ० २३-२४.
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