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________________ ४८ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा आचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण का भी यही अभिमत है। जैन आगम-साहित्य में अनुयोग के विविध भेद-प्रभेद हैं । नन्दी में आचार्य देववाचक ने अनुयोग के दो विभाग किये हैं। वहाँ पर दृष्टिवाद के परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत, अनुयोग और चूलिका ये पाँच भेद किये गये हैं। उसमें 'अनुयोग' चतुर्थ है । अनुयोग के 'मूल प्रथमानुयोग' और 'गण्डिकानुयोग' ये दो भेद किये गये हैं । मूल प्रथमानुयोग क्या है ? इस प्रश्न पर चिन्तन करते हुए आचार्य के कहा-मूल प्रथमानुयोग में अर्हत् भगवान को सम्यक्त्व प्राप्ति के भव से पूर्वभव, देवलोकगमन, आयुष्य, च्यवन, जन्म, अभिषेक, राज्यश्री, प्रव्रज्या, तप, केवलज्ञान की उत्पत्ति, तीर्थ प्रवर्तन, शिष्य-समुदाय, गण-गणधर, आर्यिकाएँ, प्रवर्तिनी, चतुर्विध संघ का परिमाण, सामान्यकेवली, मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, सम्यक् श्रु तज्ञानी, वादी, अनुत्तर विमान में गये हुए मुनि, उत्तर वैक्रियधारी मूनि, सिद्ध अवस्था प्राप्त मुनि, पादपोपगमन अनशन को प्राप्त कर जो जिस स्थान पर जितने भक्तों का अनशन कर अन्तकृत हुए, अज्ञान रज से विप्रमुक्त हो जो मुनिवर अनुत्तर सिद्धि मार्ग को प्राप्त हुए उनका वर्णन है । इसके अतिरिक्त इन्हीं प्रकार के अन्य भाव, जो अनुयोग में कथित हैं, वह 'प्रथमानुयोग' हैं । दूसरे शब्दों में यों कह सतते हैं—'सम्यक्त्व प्राप्ति से लेकर तीर्थ प्रवर्तन और मोक्षगमन तक का जिसमें वर्णन है ।' दूसरा गण्डिकानुयोग है । गण्डिका का अर्थ है-समान वक्तव्यता से अर्थाधिकार का अनुसरण करने वाली वाक्य पद्धति; और अनुयोग अर्थात् अर्थ प्रगट करने की विधि । आचार्य मलयगिरि ने लिखा है- इक्ष के मध्य १. अणुजोयणमणुजोगले सुयस्स नियएण जमभिधेयेणं । --विशेषावश्यकभाष्य, गा० १६८३. २. परिक्कमे, सुत्ताइँ, पुव्वगए, अणुयोगे, चुलिया । -श्री मलयगिरीया नंदीवृत्ति, पृष्ठ २३५ ३. पढमाणुयोगे, गंडियाणुयोगे । -श्री नन्दीचूर्णी मूल, पृ० ५८ ४. इह मूल भावस्तु तीर्थंकरः तस्य प्रथमं पूर्वभवादि अथवा मूलस्स पढमा भवाणुयोगे एत्थगरस्स अतीव भवपरियाय परिसत्तई भाणियब्वा । -श्री नंदीवृत्ति चूर्णी, पृ० ५८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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