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૪૪ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
कर मानव चेतना को विकसित करने वाली निर्भय और निर्द्वन्द्व बनाने की दिव्य व भव्य दृष्टि प्रदान करता है । वह विवेक के तृतीय नेत्र को उद्घाटित कर काम और विकारों को भस्म करता है । जबकि विज्ञान नित्य नई भौतिक सुख-सुविधाओं को समुपलब्ध कराने में अपूर्व सहयोग देता है। विज्ञान के फलस्वरूप ही मानव अनन्त आकाश में पक्षियों की भाँति उड़ानें भरने लगा है, मछलियों की भाँति अनन्त सागर की गहराई में जाने लगा है और पृथ्वी पर द्रुतगामी साधनों से गमन करने लगा है । विद्य ुत के दिव्य चमत्कारों से कौन चमत्कृत नहीं है ?
अध्यात्म अन्तर्मुखी है तो विज्ञान बहिर्मुखी है | अध्यात्म अन्तरंग जीवन को सजाता है, संवारता है तो विज्ञान बहिरंग जीवन को विकसित करता है । बहिरंग जीवन में किसी भी प्रकार की विशृंखलता नहीं आये, द्वन्द्व समुत्पन्न न हों, इसलिए अन्तरंग दृष्टि की आवश्यकता है एवं अन्तरंग जीवन को समाधियुक्त बनाने के लिए बहिरंग का सहयोग भी अपेक्षित है । बिना बहिरंग सहयोग के अन्तरंग जीवन विकसित नहीं हो सकता, अध्यात्म और विज्ञान ये परस्पर विरोधी नहीं है । उनमें किसी प्रकार का विरोध और द्वन्द्व नहीं है । अपितु वे एक-दूसरे के पूरक हैं, जीवन की अखण्डता के लिए दोनों की अनिवार्य आवश्यकता है ।
अध्यात्म का प्रतिनिधि आगम
जैन आगम आध्यात्मिक जीवन का प्रतिनिधित्व करने वाले चिन्तन का अद्भुत व अनूठा संग्रह है, संकलन है । आगम शब्द बहुत ही पवित्र और व्यापक अर्थ गरिमा को अपने आप में समेटे हुए है । शब्द कोश की दृष्टि से भले ही आगम - और ग्रन्थ ये पर्यायवाची शब्द रहे हों पर दोनों में गहरा अन्तर है । आगम 'सत्यं शिवं सुन्दरं' की, साक्षात् अनुभूति की अभिव्यक्ति है । वह अनन्त सत्य के द्रष्टा, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, वीतरागी, तीर्थकरों की विमल वाणी का संकलन आकलन है । जबकि ग्रन्थों व पुस्तकों के लिए यह निश्चित नियम नहीं है । वह राग-द्व ेष के दलदल में फँसे हुए, विषय- कषाय की आग में झुलसते हुए, विकार और वासनाओं से संत्रस्त व्यक्ति के विचारों का संग्रह हो सकता है । उसमें कमनीय कल्पना की ऊँची उड़ान भी हो सकती है पर वह केवल वाणी का विलास है, शब्दों का आडम्बर है, किन्तु उसमें अन्तरंग की गहराई नहीं है ।
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