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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
इस दिशा में एक नहीं कई सुन्दर प्रयास भी प्रारम्भ हुए हैं पर अपार अथाह कथा-सागर का आलोड़न किसी एक व्यक्ति द्वारा सम्भव नहीं है । जैसे जगन्नाथ के रथ को हजारों हाथ मिलकर खींचते हैं, उसी प्रकार प्राचीन कथा-साहित्य के पुनरुद्धार के लिये अनेक मनस्वी चिन्तकों के दीर्घकालीन प्रयत्नों की अपेक्षा है। लेकिन इसी आवश्यकता की पूर्ति हेतु पूज्य गुरुदेव श्री पुष्करमुनि जी महाराज ने वर्षों तक इस दिशा में महनीय प्रयास किया है। उन्होंने अपने विशाल अध्ययन-अनुशीलन के आधार पर सैकड़ों कथाओं का प्रणयन किया है जिनका एक सुदीर्घ सीरीज में सम्पादन मेरे द्वारा सम्भव हुआ है । संख्या है सीरीज की एक सौ ग्यारह । अध्यात्मयोगी पूज्य गुरुदेव श्री पुष्करमुनि जी उपाध्याय द्वारा प्रणीत गद्य-पद्यात्मक विराट कथा का सम्पादित नाम 'जैन कथाएँ' शीर्षक से अभिहित किया गया है जो हिन्दी जैन कथा साहित्य में अभिनव प्रदेय कहा जायेगा। जैन कथा साहित्य के विकास में अन्य योगदान
मैं यह नहीं कह सकता है कि जैन कथा साहित्य को आधुनिक लोक भाषा के परिवेश में प्रस्तुत करने का यही एकमेव प्रयास हुआ है। इस प्रकार के प्रयास वर्तमान शताब्दी के चतर्थ दशक से ही हो रहे हैं । अनेकानेक लेखकों व प्रकाशकों ने प्राचीन जैन साहित्य का आलोदनकर विभिन्न प्रकार की कथाएँ प्रस्तुत की हैं, किसी ने ५ भाग, और किसी ने २५ भाग, किसी ने ५० भाग, किसी लेखक ने ५०-६० पुस्तकें विभिन्न कथाओं की भी प्रस्तुत की हैं। सभी का प्रयास स्तुत्य है और उससे जैन कथा साहित्य को लोकव्यापी बनाने में काफी सहयोग मिला है । इन सभी प्रयत्नों में गुरुदेव उपाध्याय श्री पुष्करमुनि जी का यह प्रयास काफी व्यवस्थित, सुनियोजित और लक्ष्य को परिपूर्ण करने वाला है।
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