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हिन्दी जैन कथा और उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी की जैन कथाएँ
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तो बहुत-सी बुद्धिमानी और चतुराई से। कहीं बुद्धि का चमत्कार दिखाई देता है तो कहीं शील का । चटपटी चाट के समान कुछ कहानियाँ ऐसी भी हैं जिनमें कौतुक द्वारा पाठक को एक निराला स्वाद प्रदान किया गया है। शील, सदाचार, सत्यभाषण, ब्रह्मचर्यपालन, समाज-सेवा, अप्रमाद, विषयकषायविजय, धर्मप्रभाव, नवकारमन्त्रप्रभाव आदि से सम्बन्धित तथा विभिन्न प्रकार के मानसिक और चारित्रिक सद्गुणों की प्रेरणा तो सभी कहानियों में है। इसमें चौबीस तीर्थंकरों, बारह चक्रवतियों और नौ बलभद्र, वासुदेव, प्रतिवासुदेवों-की त्रेसठ शलाका पुरुषों की जीवनियाँ भी हैं । कुछ कथा भागों में एक ही सम्पूर्ण चरित्र है तो कुछ में छोटी-छोटी कहानियों का संकलन भी किया गया है। एक सम्पूर्ण चरित्र एक ही जन्म का है तो ऐसा भी है कि २१ भवों का चित्रण भी एक ही भाग में पूरा का पूरा दिया गया है । कुछ बड़े चरित्र भी हैं जो दो भागों में और यहाँ तक कि चार भागों में भी पूरे हुए हैं। एक तरह से सिरीज के अन्दर सिरीज। यह सिरीज अर्थात् कथा माला एक प्रकार से कहानियों का उद्यान ही है जिसमें छोटे-बड़े सभी प्रकार के वृक्ष हैं, पुष्पपादप भी हैं। कहानियों के रूप में विभिन्न प्रकार के फल मधुर रस प्रदान कर रहे हैं तो विविधवर्णी चित्रविचित्र पुष्प अपनी सौरभ-सुगन्ध से मनोभिराम बने हुए हैं। इनमें अधिकतर फल-फूल ही हैं, कुछ भागों में शूल भी मिल सकते हैं परन्तु वहाँ उन शूलों से बचने की ही प्रेरणा मिलेगी।
संक्षेप में सम्पूर्ण सिरीज में सद्गुणग्रहण और अवगुणत्याग, जीवन का सर्वांगीण विकास करने हेतु सद्विचारों, भावों, धर्म, कर्तव्य, नीतिपरकता, सामाजिकता, न्यायशीलता का सर्वतोमुखी संगम प्रस्तुत हुआ है। जैन कथाएँ : सिरीज की कथाओं का मुख्याधार
उपाध्याय श्री की 'जैन कथाएँ' सिरीज में कुछ कथाएँ अंगशास्त्रों से संकलित हैं तो अधिकांश अन्य पुराणों से । किन्तु प्रश्न यह है कि पुराणकारों ने इन कथाओं का संकलन कहाँ से किया ? इनका मूलाधार और उत्स कहाँ है ?
इस प्रश्न के उत्तर में हमें इतिहास की गहराई में जाना आवश्यक है। पंचकल्पभाष्य (गाथा १५४५-४६) में उल्लेख है कि आचार्य कालक ने
१. यह आचार्य कालक शालिवाहन गजा के समकालीन थे । इनका समय वीर निर्वाण संवत् ६०५ है।
-~~जैन कथाएँ, भाग १११, उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी, पृष्ठ २६ ।
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