________________
३८ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
कहानियाँ प्रेरणानुसार भेद के आधार पर धर्मकथा के अन्तर्गत ही हैं और यदि कहानियों के स्वरूपगत भेदों की अपेक्षा विचार किया जाए तो पश्चिमी और पौर्वात्य चिन्तकों द्वारा बताये गये सभी भेद-प्रभेदों से सम्बन्धित कहानियाँ इस सिरीज में पाठकों को सुलभ हो जाएँगी । यद्यपि इस सिरीज में चोर - कथा -- सहस्रमल चोर - भाग ३, विद्य ुच्चोर - भाग ६६ भी हैं; स्त्रीकथा— अनन्तमती - भाग २६, कोची हलवाइन - भाग २१, उमादेवीभाग २३; राजकथा- - आनंदसेन - भाग ९२, शंखराजा - भाग ८३ आदि में स्त्रीकथा, राजकथा आदि हैं, पर ये विकथा नहीं है, क्योंकि इनकी मूल प्रेरणा पाप का कुफल दिखाकर संसार से विरक्ति उत्पन्न करना है । अतएव धर्मकथा के अन्तर्गत ये निर्वेदनी कथाएँ हैं ।
जैन कथाएँ : सिरीज की कथाओं का प्रेरणास्तर
कहानी का बीज है - उत्कण्ठा और मनोरंजन | इस मूल बीज को संसार के सभी विद्वानों ने स्वीकार किया है । कथा शब्द का प्रादुर्भाव भी इसी तथ्य की ओर संकेत करता दिखाई देता है । 'क' 'था' दो अक्षरों के संयोग से 'कथा' शब्द का निर्माण हुआ है। यहाँ 'क' अक्षर श्रोता की उत्कंठा को उसी प्रकार जगा देता है जिस खिलोना दिखाने पर बच्चा उसे लेने के लिए मचल जाता है अथवा रंगीन चित्र को लेने के लिए लपक उठता है । इस उत्कण्ठा बीज का ही पल्लवन कहानी के रूप में होता है । कला समीक्षकों ने कहानी के छह घटक स्वीकार किए हैं- कथावस्तु, संवाद या कथोपकथन, पात्र या चरित्र-चित्रण, भाषा-शैली, देशकाल, उद्देश्य । प्रत्येक पल्लवित कहानी में यह सभी घटक उपलब्ध होते हैं । यद्यपि उत्कंठा और मनोरंजकता का तत्त्व सार्वभौम रूप से स्वीकार किया जाता है किन्तु नीतिकथा, धर्मकथा और रूपककथा में एक अन्य तत्त्व अनिवार्य माना गया है और वह है प्रेरणा --सद्गुणों की लोकहितकारी, समाज परिवार वैयक्तिक और राष्ट्रीय उत्थान की प्रेरणा |
,
जैन कथाएँ की इस सिरीज में सभी प्रकार की कथाओं का संकलन है, साथ ही उनमें विभिन्न प्रकार की - सद्गुणों की, जीवनसुधार की प्रेरणा है । इनमें शिथिलाचार और लोक मूढ़ता से हानि का वर्णन है तो जाति एवं ज्ञान-मद की निस्सारता भी दिखाई गई है । किसी कहानी में afsi विश्वास का महत्व है तो किसी में तितिक्षा, परोपकार, साहस का महत्व वर्णित हुआ है । इसी प्रकार अनेक कथाएँ साहस से सम्बन्धित हैं,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org