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हिन्दी जैन कथा और उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी की जैन कथाएँ ३७ हमारा विश्वास बना है कि हमें प्राचीन ग्रन्थों की 'शव-परीक्षा' न करके 'शिव-परीक्षा (कल्याण तत्व की परीक्षा) करने की आदत डालनी चाहिए । जिस कथाग्रन्थ में जहाँ जो उच्च आदर्श, प्रेरक तत्त्व और जीवन निर्माणकारी मूल्यों के दर्शन होते हैं, उन्हें बिना किसी भेदभाव के ग्रहण कर लेना चाहिए।
___ अनेक ग्रन्थों में ऐसा भी देखा जाता है कि एक ही कथानक अलगअलग प्रसंग में अलग-अलग रूप में अंकित मिलता है। कहीं कथानक का पूर्वार्ध देकर ही उसको छोड़ दिया है, कहीं उत्तरार्ध तो कहीं कुछ अंश ही । ऐसी स्थिति में कथासूत्रों को सम्पूर्ण रूप से लिखना बड़ा कठिन हो जाता है और उनमें विवादास्पद प्रश्न भी खड़ा हो सकता है। उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी की जैन कथाएँ भाग १ से १११ तक में इस प्रकार के प्रसगों पर प्रयत्न यह किया है कि जहाँ तक कोई कथा सूत्र परिपूर्ण मिला है उसे दो तीन कथाग्रंथों के सन्दर्भो से जोड़कर पूर्ण करने का प्रयत्न किया है किन्तु कथा साहित्य की विशालता और विविधता को देखते हए किसी कथानक की पूर्णता, समग्रता और प्राचीनता की पूर्ण गारन्टी तो नहीं दी जा सकती। यह तो बहुश्रु त पाठकों पर ही निर्भर है कि उन्हें कहीं कोई किसी कथानक से सम्बन्धित नया कथासूत्र मिले तो वे मुझे अथवा प्रणेता को अवगत कराएँ ताकि उसमें समय-समय पर संशोधन परिवर्द्धन किया जा सके ।
__उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी द्वारा प्रणीत १११ भागों में संकलित कहानियाँ अनेक दृष्टिकोण से महनीय हैं। एक सौ ग्यारह भागों में विभक्त उपाध्याय श्री की ये जैन कथाएँ कथा साहित्य की महत्ता में चार चाँद लगाती हैं। व्यावहारिक जगत में वस्तू के सही रूप को जानना, उस पर विश्वास करना और फिर उस पर दृढ़तापूर्वक आचरण करना-जीवन निर्माण, सुधार और उन्नत बनाने का राजमार्ग प्रशस्त करती है। यदि ठाणं शैली में कहूँ तो- दर्शन एक है-सम्यग्दर्शन - १; ज्ञान एक है- सम्यग्ज्ञान -~१; और चरित्र एक है-सम्यक् चारित्र-१ । इस प्रकार तीनों मिलकर बने १११ और सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरित्र की त्रिपुटी सीधा मुक्ति का-सर्वकर्मक्षय का मार्ग है, धार्मिक जगत में । इस दृष्टि से जैन कथाओं के समस्त भागों में संकलित कथाएँ धार्मिक तो हैं ही, साथ ही जीवननिर्माण में भी भरपूर सहायक हैं ।
जैन कथाएँ : सिरीज में सकलित कहानियाँ उपाध्यायश्री की 'जैन कथाएँ' के सभी भागों में संकलित सभी
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