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हिन्दी जैन कथा और उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी की 'जैन कथाएँ'
हिन्दी जैन कथाओं के दो रूप हमें प्राप्त होते हैं । प्रथम रूप है विभिन्न भाषाओं से अनूदित कथाएँ और दूसरा रूप है मौलिकता, जो पौराणिक कथाओं के माध्यम से अभिव्यञ्जित हुआ है । आज बहुत से सुविज्ञों
जैन पुराणों की कथाओं को अभिनव शैली में प्रस्तुत किया है और इस दिशा में सतत् निमग्न हैं । डॉ० नेमिचन्द्र के कथनानुसार ' "जैन आख्यानों में मानव जीवन के प्रत्येक रूप का सरस और विशद् विवेचन है तथा सम्पूर्ण जीवन चित्र विविध परिस्थिति रंगों से अनुरंजित होकर अंकित है । कहीं इन कथाओं में ऐहिक समस्याओं का समाधान किया गया है तो कहीं पारलौकिक रामत्याओं का । अर्थनीति, राजनीति, सामाजिक और धार्मिक परिस्थितियों, कला-कौशल के चित्र, उत्तुं गिनी अगाध नद- नदी आदि भूवृत्तों का लेखा, अतीत के जल-स्थल मार्गों के संकेत भी जैन कथाओं में पूर्णतया विद्यमान हैं । ये कथाएँ जीवन को गतिशील, हृदय को उदार और विशुद्ध एवं बुद्धि को कल्याण के लिए उत्प्रेरित करती हैं। मानव को मनोरंजन के साथ जीवनोत्थान की प्रेरणा इन कथाओं में सहज रूप में प्राप्त हो जाती है । हिन्दी जैन साहित्य में संस्कृत और प्राकृत की कथाओं का अनेक लेखकों और कवियों ने अनुवाद किया है । एकाध लेखक ने पौराणिक कथाओं का आधार लेकर अपनी स्वतन्त्र कल्पना के मिश्रण द्वारा अद्भुत कथा साहित्य का सृजन किया है । इन हिन्दी कथाओं की शैली बड़ी ही प्रांजल, सुबोध और मुहावरेदार है । ललित लोकोक्तियाँ, दिव्य दृष्टान्त और सरस मुहावरों का प्रयोग किसी भी पाठक को अपनी ओर आकृष्ट करने के लिए पर्याप्त है ।"
१. हिन्दी जैन साहित्य - परिशीलन, भाग २, डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री, पृष्ठ ७७ ।
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