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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
__ अपभ्रश का कथा साहित्य प्राकृत की ही भाँति प्रचुर तथा समृद्ध है। अनेक छोटी-छोटी कथाएँ व्रत सम्बन्धी आख्यानों को लेकर या धार्मिक प्रभाव बताने के लिए लोकाख्यानों को लेकर रची गई हैं। अकेली रविव्रत कथा के सम्बन्ध में अलग-अलग विद्वानों की लगभग एक दर्जन रचनाएँ मिलती हैं। केवल भट्टारक गुणभद्र रचित सत्रह कथाएँ उपलब्ध हैं । इसी प्रकार पंडित साधारण की आठ कथाएँ तथा मुनि बालचन्द्र की तीन एवं मुनि विनयचन्द्र की तीन कथाएँ मिलती हैं । अपभ्रश की इन जैनकथाओं के अनुशीलन से मध्यकालीन भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का परिज्ञान होता है।
१. भविसयत्तकहा तथा अपभ्रंश कथाकाव्य, डॉ. देवेन्द्र कुमार शास्त्री । २. अपभ्रंश भाषा और साहित्य की शोधप्रवृत्तियाँ, डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्री,
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