________________
अपभ्रंश जैन कथा साहित्य ३१ आधत है। पाँच खण्डों में विभक्त 'पउमचरिउ' में नव्वे संधियाँ हैं। स्वयंभू का 'रिठणेमिचरिउ' एक सौ बारह सन्धियों और एक हजार नौ सौ तेतीस कड़क्कों वाला एक महाग्रन्थ है जिसमें यादव, कुरु, युद्ध और उत्तर चार काण्ड है । इस कथाकृति में वाईसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि और उनके तीर्थ में होने वाले श्रीकृष्ण तथा कौरव-पाण्डवों की कथा का वर्णन है। यह रचना हरिवंशपुराण, भारतपुराण आदि संज्ञाओं से भी जानी जाती है।
पुष्पदन्त प्रणीत 'तिसट्ठि महापुरिसगुणालंकारु' अर्थात् त्रिषष्टि शलाका पुरुष गुणालंकार ‘महापुराण' की संज्ञा से विख्यात है। आदिपुराण और उत्तरपुराण इन द्वय खण्डों में प्रेसठ शलाका पुरुषों के चरित शब्दित हैं। इसका श्लोक परिमाण बीस हजार है। पूष्पदंत की दूसरी कृति ‘णायकूमार चरिउ' में नौ सन्धियाँ हैं जिसमें श्रुतपंचमी का माहात्म्य बतलाने के लिए नागकुमार की रोमांटिक जीवन कथा वर्णित है । 'जसहरचरिउ' पुष्पदंत की चार सन्धियों की रचना है जो मुनि यशोधर की जीवन कथा को प्रस्तुत करती है । सम्पूर्ण कथानक धार्मिक और दार्शनिक उद्देश्यों से परिपूर्ण है।
तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के चरित्र को पद्मकीर्ति ने अपनी कृति 'पासचरिउ' में उनके पूर्व भवों (जन्मों) की कथा के साथ चित्रित किया है । धवल की विशाल अपभ्रंश कृति 'रिट्ठणे मिचरिउ' अर्थात् हरिवंश पुराण में एक सौ बाईस संधियाँ हैं । यह बृहत्काय कृति महाभारत हरिवंश की कथा से सम्बद्ध है। १. अपभ्रंश के आद्यकवि स्वयंभू और उनका परवर्ती काव्यकारों पर प्रभाव, श्री
जैन सिद्धान्त भास्कर, vol ४०, नं० २, दिसम्बर ८७, डा० आदित्य
प्रचण्डिया 'दीति', पृष्ठ ४१-४५ । २. महाकवि पुष्पदंत : व्यक्तित्व और कर्तृत्व, डा० आदित्य प्रचण्डिया 'दीति', जैन
विद्या, पुष्पदन्त विशेषांक, खण्ड १, १९८३, पृष्ठ ६-१५ । ३. अपभ्रश वाङमय में भगवान पार्श्वनाथ, डा० आदित्य प्रचण्डिया 'दीति',
तुलसीप्रज्ञा, जैन विश्व भारती, लाडनं , खण्ड १२, सितम्बर ८६, पृष्ठ ४५ ॥ ४. (क) केटेलाग आव संस्कृत एण्ड प्राकृत मेन्युस्क्रिप्ट्स इन द सी० पी० एण्ड बरार, सम्पा० डा० हीरालाल जैन, पृष्ठ ७१६, ७६२-७६७ तथा भूमिका, पृष्ठ ४८-४६ । (ख) जैन साहित्य और इतिहास, नाथूराम प्रेमी, पृष्ठ ४२३ । (ग) अपभ्रंश भाषा का पारिभाषिक कोश, डा० आदित्य प्रचण्डिया 'दीति', पृष्ठ ४७-४८ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org