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प्राकृत जैन कथा साहित्य २६ विण्टरनित्स ने भी प्राकृत-कथा-साहित्य का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए लिखा है-"प्राकृत का कथा साहित्य वस्तुतः विशाल है । इसका महत्त्व केवल तुलनात्मक परिकथा साहित्य के विद्यार्थी के लिए ही नहीं है बल्कि साहित्य की अन्य शाखाओं की अपेक्षा हमें इससे जनसाधारण के वास्तविक जीवन की झांकियाँ भी मिलती हैं । जैसे इन कथाओं की भाषा और जनता की भाषा में अनेक साम्य हैं वैसे उनका वर्ण्य विषय भी विभिन्न वर्गों के वास्तविक जीवन का चित्र हमारे सामने उपस्थित करता है। केवल राजा और पुरोहितों का जीवन ही इस कथा साहित्य में चित्रित नहीं है अपितु साधारण व्यक्तियों का जीवन भी अंकित है।''1.
भारतीय संस्कृति, साहित्य और सभ्यता के परिज्ञान हेतु प्राकृत-कथा साहित्य का अध्ययन करना अतीव उपयोगी है । प्राकृत-कथा साहित्य राजा से लेकर रंक तक, सभी का समानरूप से वर्णन करता है। उसमें कथारस की प्रचुरता के साथ ही मनोरंजन, कुतूहल और प्रभावोत्पादकता पर्याप्त मात्रा में है। इन कथाओं में मनोरंजन मुख्य उद्देश्य नहीं है अपितु व्यक्तित्व का विकास और चरित्र का उत्कर्ष करना ही उनका उद्देश्य है। जीवन की सभी समस्याओं का चाहे वे सामाजिक हों, पारिवारिक हों, राजनैतिक हों या धार्मिक हों, समाधान उनमें किया गया है। अभिप्राय यह है कि जैन प्राकृत-कथा साहित्य अत्यधिक विशाल है, उसकी अपनी मौलिक विशेषताएँ हैं । जितना अधिक इस साहित्य का प्रचार-प्रसार होगा उतना ही अधिक उसका सही मूल्यांकन किया जा सकेगा।
१. ए हिस्ट्री आव इण्डियन लिटरेचर, भाग २, पृष्ठ ५४५ ।
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