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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
इस मतभेद के आगे प्रायः एक-सा ही घटनाक्रम है। तदनुसार एक दिन धन्या की सास ने उससे उसकी उदासी के बारे में पूछताछ की तो वह चुप्पी लगा गई। किन्तु बहू की चुप्पी देखकर सासु को और वेदना हुई। और जिद करके पूछने लगी तो धन्या बिलख-बिलख कर रो पड़ी। आखिर, उसे बताना पड़ा कि उसका पति रात को काफी देर से घर आता है। उसकी सासु ने उसे निश्चिन्त होकर सोने की अनुमति उस दिन दे दी और स्वयं जागते रहने का विश्वास भी।
इसी रात, तीसरे पहर, सिद्ध जब घर लौट कर आया तो उसने घर का बन्द दरवाजा हर रोज की तरह खटखटाया।
दरवाजे की खट-खट आवाज सुनकर उसकी माँ-लक्ष्मी ने पूछा'इतनी रात को कोन दरवाजा खटखटा रहा है ?'
'म सिद्ध हूँ।' सिद्ध ने जबाव दिया।
लक्ष्मी ने बनावटी गुस्सा दिखलाते हुए पुनः कहा-'इतनी रात गये घर आने वाले सिद्ध को मैं नहीं पहचानती।' ___ 'फिर, मैं इतनी रात गये कहाँ जाऊँ ?'-सिद्ध ने प्रश्न किया।
'जिस घर का दरवाजा इस समय खुला हो, वहीं जा' -मां ने उसे ताड़ना/शिक्षा देने के उद्देश्य से कहा ।
'ठीक है, मां ! ऐसा ही करूंगा' -आहत स्वाभिमान भरे स्वर में सिद्ध ने जबाव दिया और वहां से लौट आया।
गांव में घूमते-घूमते वह उपाश्रय के सामने पहुंचा तो उसने देखा'उपाश्रय का दरवाजा खुला है।'
___ रात्रि का थोडा सा ही समय शेष रह गया था। इसलिए वहाँ ठहरे हुए साधु-जन जाग गये थे और अपनी-अपनी क्रियायें कर रहे थे।
___ इन शान्त मुनिवरों को देख, वह विचार करने लगा-'धन्य है इनका जीवन ! जो ये धर्म की आराधना/साधना में अपना समय बिताते हैं । एक मैं हूँ, जिसे जुआ खेलने और दुराचार करने की वजह से, अपनी पत्नी व मां के द्वारा अपमानित होना पड़ा । ....."अच्छा हुआ, सुबह का भूला, शाम को ठीक स्थान पर आ पहुंचा।
यह विचार कर वह अन्दर गया और वहाँ पर बैठे वृद्ध सन्त को बन्दन/प्रणाम किया।
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