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सिद्धर्षि : जीवनवृत्त
सिद्धर्षि; भीनमाल के सुप्रसिद्ध धनपति शुभंकर का 'सिद्ध' नामक पुत्र था, यह कुछ विद्वानों की राय है। कुछ विद्वानों की दृष्टि से श्रीमालपुर में कोई धनी जैन सेठ चातुर्मास के प्रसंग में देवदर्शन के लिए जा रहा था। उसे नाली में पड़ा हुआ 'सिद्ध' नाम का राजपुत्र मिला था। इसे, जुए में हारते-हारते कुछ साथी जुआरियों का रुपया उधार करना पड़ा था, जिसे न देने की वजह से निर्दयतापूर्वक मार-पीट करके नाली में गिरा दिया था। सेठ ने उन जुआरियों को देय धन दिया और सिद्ध को उठाकर अपने घर लिवा ले आया। पढ़ा-लिखा कर उसका विवाह किया और अपना सारा कार्य-भार उसे सौंप दिया। व्यापार सम्बन्धी बहीखातों आदि को लिखने में, उसे प्रायः काफी रात गये, घर आना सम्भव हो पाता था । जिससे उसकी पत्नी अनमनी-सी और उदास रहती हुई काफी कमजोर हो चली थी।
जो विद्वान, 'सिद्ध' को शुभंकर सेठ का पुत्र मानते हैं, उनकी दृष्टि से शुभंकर ने ही इसे पढ़ा-लिखा कर योग्य बनाया था । और इसका विवाह 'धन्या' नाम की कन्या से कर दिया था।
सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करते हुए एक दिन सिद्ध के मित्र उसे किसी बाग में ले गये। वहां उसे जुआ खेलने बैठा लिया, जिसमें वह हार गया। दूसरे दिन, वह फिर जुआ खेला और हारा । गुस्से में आकर, वह तीसरे दिन भी जुआ खेलने गया तो उसकी जीत हो गई। इस हार-जीत के आकर्षण और उत्सुकता ने उसे पूरा जुआरी बना दिया। फलतः वह रात-भर जुआ खेलने में या दुराचार/वेश्यागमन में लीन रहने लगा । इसी वजह से, उसकी पत्नी धन्या, दुःखी और कृश हो चली थी।
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