SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 382
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६६ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा साध्यवसाना लक्षणा को प्रमुखता से समर्थन मिला है। साथ ही, कवि की कल्पनासामर्थ्य और पूर्ववर्ती आगमों की रूपकात्मक विधा को ग्रन्थकार ने, अपनी रचना की सर्जना में बीज-बिन्दु स्वीकार किया है । ग्यारहवीं शताब्दी के मध्यभाग में श्रीकृष्ण मिश्र लिखित 'प्रबोधचन्द्रोदय' नाटक, अमृत का मूर्त विधान करने वाली लाक्षणिक शैली का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इस नाटक, में ज्ञान विवेक, विद्या, बुद्धि, मोह, दम्भ, श्रद्धा, भक्ति और उपनिषद् जैसे अमूर्त भावों की भी पुरुष-स्त्री पात्रों के रूप में अवतारणा की है । नाटक का मूल प्रतिपाद्य आध्यात्मिक अद्वैतवाद का प्रतिपादन है। चेदि के राजा कर्ण (१०४२ ई. में जीवित) ने, कीर्तिवर्मा को परास्त किया था। परन्तु, उसके एक सेनानी गोपाल ने अपने बाहुबल से उसे हराने में सफलता प्राप्त कर ली थी। तब, इसने कीर्तिवर्मा को पुनः सिंहासनस्थ कर दिया था। इसी गोपाल की प्रेरणा से, कीर्तिवर्मा के समक्ष, यह नाटक अभिनीत हुआ था। कीर्तिवर्मा, जेजाक भुक्ति चन्देलवंशीय राजा था। चन्देलों की कला-प्रियता के प्रतीक हैं-खजुराहो के शैव मन्दिर । सम्भव है, यहाँ चन्देलों की राजधानी रही हो। कीर्तिवर्मा के पूर्वज राजा धङ्ग का शिलालेख १००२ ई., खजुराहो के विश्वनाथ मन्दिर में मिलता है। कीर्तिवर्मा, चन्देल वंश का एक प्रतापी और पराक्रमी राजा था। इसके अनेकों शिलालेख, बुन्देलखण्ड के विभिन्न स्थानों पर प्राप्त होते हैं । १ सारोपा लक्षणा क्वापि क्वापि साध्यवसानिका । धौरेयतां प्रपद्यते ग्रन्थस्यास्य समर्थने ।। -प्रथम-अधिकार-५० अत्रात्मचेतनादीनां यत् दाम्पत्यादिशब्दनम् । तत्सर्वं कल्पनामूलं सापि श्रेयस्करी क्वचित् ।।४७।। मीनमैनिकयोः पाण्डपत्रपल्लवयोरपि । या मिथ: संकथा सूत्र बद्धा सा कि न बोधये ॥४८।। नायकत्वं कषायाणां कर्मणां रिपुसन्यताम् । आदिशन्नागमोऽप्यस्य प्रबन्धस्येति बीजताम् ॥४६॥ -प्रथम-अधिकार-४७-४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy