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________________ आगमोत्तरकालीन कथा साहित्य ३६५. पड़ रहा है ?' उत्तर मिलता है-'पत्र-पुष्पों से मनोहारी चैत्य-वृक्ष, प्रचण्ड आँधी के वेग से गिरने जा रहा है। इसको आश्रय बनाकर रहने वाले पक्षी, शोकाकुल होकर कलरव कर रहे हैं।' इस दृष्टान्त में, नमि को 'चैत्यवृक्ष', और मिथला के नागरिकों को 'पक्षिसमुदाय' रूप प्रतीकों में चित्रित किया गया है। इसी अध्ययन में, श्रद्धा' नगर, 'संवर' किला, 'क्षमा'-गढ़, 'गुप्ति' रूपी शतघ्नी (तोपें या बन्दूके), 'पुरुषार्थ' रूपी धनुष, ईर्या' रूपी प्रत्यञ्चा , 'धैर्य' रूपी तूणीर, 'तपस्या' रूपी बाण और 'कर्म' रूपी कवच जैसे विभिन्न रूपक/ प्रतीक उल्लिखित हैं ।1 इसी में, दुष्ट बैलों का रूपक भी द्रष्टव्य है । 'समराइच्च कहा' (हरिभद्रसूरि) का 'मधुबिन्दु' दृष्टान्त तो विशुद्ध रूपक शैली में वर्णित है। ये सारे उदाहरण, रूपक साहित्य के बीज-बिन्दु माने जाते हैं। किन्तु, इस शैली की काव्य-परम्परा का सर्वप्रथम सूत्रपात करने का श्रेय मिलता है--सिद्धर्षि को। इनकी 'उपमिति-भव-प्रपञ्च कथा' को रूपकसाहित्य-परम्परा का सर्वप्रथम और अनुपम ग्रन्थ माना जा सकता है। उपमिति-भव-प्रपञ्च कथा की प्रस्तावना में, डॉ० जैकोबी ने इसे भारतीय रूपक साहित्य की प्रथम रचना स्वीकार किया है। इससे पहिले की अपभ्रंश रचना 'मदनजुज्झ' रूपकात्मक शैली की उपलब्ध है। किन्त, उसमें अंकित उसके रचनाकाल वि० सं० ६३२ के अनुरूप प्राचीनता के पोषण में, उसको भाषा का अंतरंग परीक्षण हुए बिना, उसे प्रथम रूपक काव्य मानना, उचित न होगा। जयशेखरसूरि की रचना 'प्रबोधचिन्तामणि' में सारोपा और १ उत्तराध्ययन-अध्ययन ६ व १० २ वही-अध्ययन-२७ ३ सिद्धव्याख्यातुराख्यातु पहिमानं हि तस्य कः । समस्त्युपमितिमि यस्यानु पमिति कथा । -प्रद्युम्नसूरि का-समरादित्य संक्षेप 8 I did not find something still "more important; the great literary value of the U. Katha, and the fact that is the first allegorical work in Indian Literature. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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