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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
कथा में चारों पुरुषार्थ, नौ रस, आदर्श चरित्र और जन्म-जन्मान्तरों के संस्कारों का वर्णन रहता है ।1 जैनकथा साहित्य गुण और परिणाम दोनों ही दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। जनजीवन का पूर्णतया चित्रण उसमें किया गया है।
___ आगम साहित्य में बीजरूप से कथाएँ मिलती हैं तो नियुक्ति, भाष्य, चूणि और टीका साहित्य में उनका पूर्ण निखार दृष्टिगोचर होता है । हजारों लघु व बहत् कथाएँ उनमें आयी हैं। आगमकालीन कथाओं की यह महत्वपूर्ण विशेषता है कि उनमें उपमाओं और दृष्टान्तों का अवलम्बन लेकर जन-जीवन को धर्म-सिद्धान्तों की ओर अधिकाधिक आकर्षित किया गया है। उन कथाओं की उत्पत्ति उपमान, रूपक और प्रतीकों के आधार से हुई है। यह सत्य है कि आगमकालीन कथाओं में संक्षेप करने के लिए यत्र-तत्र 'वण्णओ' के रूप में संकेत किया गया है जिससे कथा को पढ़ते समय उनके वर्णन की समग्रता का जो आनंद आना चाहिए, उसमें कमी रह जाती है। व्याख्या साहित्य में यह प्रवृत्ति नहीं अपनाई गई। कथाओं में जहाँ आगम साहित्य में केवल धार्मिक भावना की प्रधानता थी, वहाँ व्याख्या साहित्य में साहित्यिकता भी अपनाई गयी । एकरूपता के स्थान पर विविधता और नवीनता का प्रयोग किया जाने लगा। पात्र, विषय, प्रवत्ति, वातावरण, उद्देश्य, रूपगठन, एवं नीति संश्लेषण प्रभृति सभी दृष्टियों से आगमिक कथाओं की अपेक्षा व्याख्या साहित्य की कथाओं में विशेषता व नवीनता आयी है। आगमकालीन कथाओं में धार्मिकता का पुट अधिक आजाने से मनोरंजन व कुतूहल का प्रायः अभाव था किन्तु व्याख्या साहित्य की कथाओं में यह बात नहीं है। आगमयुग की कथाएँ चरित्रप्रधान होने से विशेष विस्तार वाली होती थीं पर व्याख्या साहित्य की कथाएँ संक्षिप्त ; किन्तु ऐतिहासिक, अर्द्ध ऐतिहासिक, पौराणिक सभी प्रकार की कथाएँ हैं।
वसुदेवहिंडी चरितात्मक कथा ग्रंथ है। यह दो खण्डों में विभक्त है। प्रथम खण्ड के कर्ता संघदास गणी वाचक हैं और द्वितीय खण्ड के निर्माता धर्मसेनगणी हैं। प्रथम खण्ड २६ लंभकों में पूर्ण हुआ है और द्वितीय खण्ड ७१ लम्भकों में । 'बृहत्कथा' के समान यह ग्रंथ भी कथाओं का कोष है। जैसे संस्कृत साहित्य में बृहत्कथा महाभारत और रामायण का उपजीव्य काव्य माना गया है वैसे ही प्राकृत साहित्य में वसुदेवहिंडी उपजीव्य है।
१. समस्तफलान्तेति वृत्तवर्णना समरादित्यवत् सकलकथा ।
-हैमकाव्यशब्दानुशासन ५/६, पृष्ठ ४६५ ।
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