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________________ आगमोत्तरकालीन कथा साहित्य ३६१ पूर, अमरसुन्दर की रचना है । इसमें अम्बड की कथा आधुनिक रूप में वर्णित है । ज्ञानसागरसूरि की रचना 'रत्नचूडकथा " में पर्याप्त रोचक और मनोरंजक कथाएँ हैं । इसमें एक ऐसी कथा आई है, जिसमें, 'अनीतिपुर' नाम की नगरी में 'अन्याय' नाम के राजा और 'अज्ञान' नाम के मन्त्री की कल्पनाएँ करके, इन सब का मनोहारी चरित्र-चित्रण किया गया है । इसका रचनाकाल, पन्द्रहवीं शताब्दी का मध्य भाग अनुमानित किया जाता है । इसमें, अन्य और भी कथानक हैं । जिनमें में अनीतिपुर नगर, अन्याय राजा और अज्ञान मन्त्री के कथानक की कल्पना में, सिद्धषि प्रणीत 'उपमिति भव-प्रपञ्च कथा' की परम्परा का प्रभाव स्पष्ट दिखलाई पड़ता है। पञ्चतंत्र की शैली पर लिखी गई 'सम्यक्त्व कौमुदी' धार्मिक और मनोरंजक कथाओं से भरी-पूरी रचना है । कथा का प्रारम्भ और सम्पूर्ण कथावस्तु गद्य में है । किन्तु, बीच-बीच में कुछ गम्भीर बातों के लिए पद्यों का प्रयोग 'उक्तञ्च' 'अन्यच्च' ' तथाहि' 'पुनश्च' आदि शब्दों का सहारा लेकर किया गया है । काल्पनिक आख्यानों के आधार पर सरल, पूर्ण शैली में रचित, धार्मिक कथाबस्तुपूर्ण इस रचना के कर्ता का और विनोद - रचना काल का भी कोई निश्चय नहीं किया जा सका है । किन्तु, १४३३ ई० की, इसकी जो पाण्डुलिपि श्री ए. बेवर को प्राप्त हुई, उससे यह निष्कर्ष निकाला गया है कि इसका रचनाकाल भी १४३३ ई. से बाद का नहीं हो सकता । इस रचना में स्फुटित व्यंग्य, उन्नत आदर्श, सौम्य व्यवहार और लोक कल्याणकारी सिद्धान्तों का अक्षय वैभव पद पद पर भरा पड़ा है। 'क्षत्रचूड़ामणि' में जिन साहसिक, धार्मिक और मनोरंजनकारी कथाओं का समावेश वादीभसिंह ने किया है और प्रत्येक पद्य के अन्त में हितकर, मार्मिक और अनुभवपूर्ण गम्भीर नोति वाक्यों का जिस तरह से समावेश किया है, उसे देखकर, इसे नीति वाक्यों का आकर ग्रन्थ कहना, अतिशयोक्ति न होगा । जीवन्धर कुमार का सम्पूर्ण चरित इसमें वर्णित १ यशोविजय जैन ग्रंथमाला - भावनगर द्वारा सन् १९१७ में प्रकाशित । श्री हर्टेल द्वारा जर्मनी में अनूदित । द्रष्टव्य- वही-पृष्ठ- ५४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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