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________________ ३६० जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा जाता है । इसी तरह का मनोरंजक कथानक है-'उत्तम चरित कथानक । आश्चर्यपूर्ण और साहसिक घटनाएँ इसमें वर्णित हैं । प्रत्येक कथानक, जैन धर्म के किसी न किसी पवित्र आदर्श की ओर इंगित करता है । इसकी रचना गद्य-पद्यमय है । भाषा संस्कृतमय है। कुछ प्रान्तीय भाषाओं के शब्द प्रयोग, इसका रचना-स्थल गुजरात में होने का संकेत करते हैं । 'पाप बुद्धि और धर्मबुद्धि' कथानक एक विनोदपूर्ण धार्मिक कृति है। _ 'चम्पकवेष्ठि' जिनकीर्ति द्वारा काल्पनिक कथानक पर रचित एक मनोरंजक कथानक है। इसमें जो तीन कथाएँ संकलित है, उनमें से पहला कथानक, भाग्य-रेखाओं को निरर्थक बनाने में असफल महाराज :रावण' का है। दूसरा कथानक, एक ऐसे भाग्यशाली बालक का है, जो प्राणनाशक पत्रक में फेरबदल करके अपने प्राणों की रक्षा कर लेता है। तीसरा कथानक एक ऐसे व्यापारी का है, जो जीवन भर तो दूसरों को ठगता है, किन्तु जीवन की अन्तिम बेला में, स्वयं, एक वेश्या द्वारा ठग लिया जाता है। इसका रचनाकाल पन्द्रहवीं शताब्दी अनुमानित किया जाता है। ___ इसी स्तर की एक ओर रचना 'पाल-गोपाल कथानक' जिनकीर्ति द्वारा रचित है। इसमें, प्रस्तुत कथानक भी मनोरंजक है। प्राणघातक पत्रक को बदल कर प्राण रक्षा करने वाले एक और कथानक के आधार पर 'अघटकुमार" कथा का प्रणयन किया गया है। इस कथा के भी दो अन्य संस्करण मिलते हैं। जिनमें, एक छोटा, दूसरा बड़ा है। एक गद्यमय है और दूसरा पद्यमय । 'अम्बड चरितं' जादुई मनोविनोद से भर१ इसका गद्य भाग श्री ए. बेवर द्वारा जर्मनभाषा में अनूदित और सम्पादित है। 'उत्तमकुमारचरित' नाम से चारुचन्द्र द्वारा किया गया इसका पद्यबद्ध रूपान्तर भी श्री हीरालाल हंसराज, जामनगर द्वारा सम्पादित हो चुका है । द्रष्टव्यविन्टर नित्ज : ए हिस्ट्री आफ इण्डियन कल्चर, भाग-२, पृष्ठ-५३८ २ श्री ई. लवाटिनी द्वारा इटालियन भाषा में सम्पादन और अनुवाद क्रिया ज चुका। द्रष्टव्य-वही-पृष्ठ ५३८ ३ श्री हर्टेल द्वारा अंग्रेजी में अनूदित-सम्पादित-वही-५१६ ४ श्री चारलट क्रू से द्वारा पद्यभाग का जर्मन में अनुवाद किया गया है । संक्षिप्त पद्यभाग १९१७ में निर्णयसागर प्रेस बम्बई 'अघटकुमार चरित' नाम से प्रका शित हो चुका हैं । द्रष्टव्य-वही-पृष्ठ-५४० ५ श्री हीरालाल हंसराज, जामनगर द्वारा सम्पादित एवं श्री चारलट क्रू से द्वारा जर्मन में अनूदित । द्रष्टव्य-वही-पृष्ठ-५४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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