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आगमोत्तर कालीन शथासहित्य ३५३ पौराणिक साहित्य के अन्तर्गत, आदिपुराण (जिनसेनाचार्य), उत्तरपुराण (गुणभद्र), महापुराण (अपभ्रश, पुष्पदन्त) आदि विभिन्न पुराणों में, तथा 'धर्मशर्माभ्युदय' और 'जीवन्धरचम्पू' (दोनों हरिचन्द), चन्द्रप्रभचरित (वीरनन्दि), यशस्तिलकचम्पू (सोमदेव), हरिवंश (जिनसेन), पद्मवरित रविषेण); पुरुदेवचम्पू (अर्हद्दास) एवं गद्यचिन्तामणि (वादीसिंह) आदि विभिन्न महाकाव्यों/चरितकाव्यों में पाये जाने वाले आख्यान तथा कथायें, जैनधर्म-कथाओं की महनीयता को सिद्ध करते हैं । तमिल और कन्नड़ भाषा के जैन साहित्य में भी, भारतीय आख्यान-साहित्य की अनुपम निधि भरी पड़ी है।
नीतिकथा भारतीय आख्यान साहित्य में 'नीतिकथा' साहित्य का विशेष स्थान है । संस्कृत साहित्य की नीतिकथाओं ने, विश्व के कथा साहित्य में अपना स्थान विशेष ऊँचा बना लिया । क्योंकि, वे जिन-जिन देशों में पहुँची, वहींवही पर लोकप्रिय बनती गई।
अंग्रेजी के प्रख्यात आलोचक डॉ. सेमुअल जान्सन ने, नीति-कथा की परिभाषा इस प्रकार की है-'विशुद्ध नीतिकथा, एक ऐसा निवेदन है, जिसमें कुछ बुद्धिहीन प्राणी एवं कभी-कभी अचेतन पदार्थ, पात्रों के रूप में नीति-तत्त्व की शिक्षा देने हेतु आये हों, और वे, मानवीय हितों एवं भावों को ध्यान में रखकर, चेष्टा तथा सम्भाषण करने में कल्पित किये गये हों।
डॉ. जान्सन की उक्त परिभाषा के अनुसार नीतिकथा के तीन मूलतत्त्व स्पष्ट होते हैं-१. पात्र, २. हेतु, एवं ३, कल्पना तत्व । इन तीनों का स्वरूप-निर्धारण, उक्त परिभाषा के अनुसार, हम निम्नलिखित रूप में कर सकते हैं१. पात्र-मानवेतर (बुद्धिहीन) चेतन प्राणी तथा अचेतन पदार्थ । २. हेतु-किसी नीतितत्व की शिक्षा देना, या उसका स्वरूप-प्रति-पादन । ३. कल्पना तत्व- मानवीय हितों एवं भावों को ध्यान में रखते हुए, ऐसे
पात्रों की कल्पना, जिनमें मानवोचित सम्भाषण और चेष्टाओं की कल्पना करना सहज सम्भव हो।
१. Lives of the English Poets : Vol. I, Edited By. G. Birckback
Hill, Oxford, Goy. P. 283
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