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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
अनन्त-संसारी बनना पड़ा, और भव्यसेन मुनिराज, द्वादशाङ्ग एवं चौदह पूर्वो के पाठी होते हुये भी, सम्यक्त्व के अभाव में, भाव-श्रामण्य प्राप्त नहीं कर पाये।
इन कथाओं के साथ, भावश्रमण शिवकुमार का ऐसा कथानक भी जुड़ा हुआ है, जिसमें इन्हें, युवतियों से घिरा रहने पर भी विशुद्ध चित्त और आसन्न भव्य बने रहने की भूमिका में चित्रित किया गया है । कुन्दकुन्दाचार्य के ही 'शीलपाहुड' में सात्यकि पुत्र का एक और भावपूर्ण कथानक वर्णित है।
_ तिलोय-पण्णत्ति' में प्रेसठ शलाका-पुरुषों की जीवन-घटनाओं का प्रभावपूर्ण वर्णन है। वट्टकेर के 'मूलाचार' में एक ऐसी घटना का वर्णन किया गया है, जिसमें, एक ही दिन, मिथिला नगरी की कनकलता आदि स्त्रियों, और सागरक आदि पुरुषों की हत्या का वर्णन है ।' 'मूलाराधना' में अनेकों सुन्दर आख्यान हैं। जिनमें, सुरत की महादेवी, गोर संदीवमुनि'
और सुभग ग्वाला आदि के आख्यान मुख्य हैं। इनका विस्तृत वर्णन हरिषेण और प्रभाचन्द्र ने भी अपने-अपने कथाकोषों में किया है।
समन्तभद्र स्वामी का 'रत्नकरण्ड-श्रावकाचार' आख्यानों का भण्डार है। इसमें अंजन चोर, अनन्तमती, उद्दायन, रेवती, जिनेन्द्रभक्त, वारिषेण, विष्णुकुमार, और वज्रकुमार आदि के आख्यानों से ज्ञात होता है कि ये सब, सम्यक्त्व के प्रत्येक अंग का परिपूर्ण पालन करने के लिये विख्यात थे। इनके अलावा कुछ ऐसे व्यक्तियों के आख्यान भी इसमें मिलते हैं, जो व्रतों का पालन करते हुए भी, पापाचरण के लिये प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके थे। इसी में, उस मेंढक की भी प्रसिद्ध कथा वर्णित है, जो भ० महावीर के दर्शन के लिए निकलता है, किन्तु रास्ते में ही श्रेणिक के हाथी के पैर के नीचे दब कर मर जाता है। और, तुरन्त महद्धिक देव का स्वरूप प्राप्त कर लेता है।
१. भावपाहुड गाथा ५० २. वही गाथा ५१ ३. वही गाथा ५२
४. शील प्राभृत गाथा ५१ ५. मूलाचार १/८६-८७ ६. मूलाराधना आ० ६, गाथा १०६१ ७. वही, गाथा ६१५ ८ . वही, गाथा ७५९ ६. बृहद् कथाकोष प्रस्तावना सं० डॉ० ए० एन० उपाध्ये ।
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