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३५० जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
'अन्तकृद्दशांग' में उन अनेकों महापुरुषों और स्त्रियों का जीवनचरित्र वर्णित है, जिन्होंने उग्र तपश्चरण द्वारा, अपनी सांसारिकता को विखण्डित करके मोक्ष प्राप्त किया । 'अनुत्तरोपपातिक दशांग' में, ऐसे दस साधकों की जीवनचर्या वर्णित की गई है, जो अपने साधना बल से, पहले तो अनुत्तर विमानों में जन्म लेते हैं, फिर मनुष्य जन्म प्राप्त कर, मोक्षगामी बनते हैं । स्थानांगर, तत्त्वार्थराजवार्तिक' और अंगपण्णत्त में, साधकों के नामों में, और उनके वर्णन में भी भिन्नता स्पष्ट देखी गई है
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'विपाक सूत्र' में शुभ कर्मों का और अशुभ कर्मों का परिणाम कंसा होता है ? यह बतलाने के लिए दस-दस व्यक्तियों के जीवन चरित्रों को उद्धृत किया गया है । इसके प्रथम श्रुत-स्कन्ध में, दुष्कृत परिणामों का दिग्दर्शन कराने के लिये, जिन दस कथानकों को चुना गया है, उनसे सम्बद्ध व्यक्तियों के नाम इस प्रकार हैं- मृगापुत्र, उज्झितक, अभग्नसेन, (अभग्गसेन ), शक कुमार, बृहस्पतिदत्त, नन्दीवर्धन, उदुम्बरदत्त, शौर्यदत्त, देवदत्ता और अंजुश्री । स्थानांग में, इनसे भिन्न नाम मिलते हैं, जो कि इस प्रकार हैं - मृगापुत्र, गोत्रास, अंडशकट, माहन, नंदीषेण, शौरिक, उदुम्बर, सहसोद्वाह, आमटक और कुमारलिच्छवी ।' इन नामों का वर्तमान में उपलब्ध नामों के साथ सुन्दर समन्वय किया है- पं० बेचरदासजी दोशी ने, जो दृष्टव्य है ।
दूसरे श्रुतस्कन्ध में, सुकृत परिणामों का दिग्दर्शन कराने वाले, जिन दस जीवनवृत्तों को चुना गया है, उनके नाम हैं - सुबाहुकुमार, भद्रनन्दी, सुजातकुमार, सुवासवकुमार, जिनदासकुमार (वैश्रमणकुमार ), धनपति, महाबलकुमार, भद्रनन्दीकुमार, और वरदत्तकुमार । इसी तरह के शिक्षाप्रद भावप्रधान आख्यान, उत्तराध्ययन सूत्र नियुक्ति, दशवैकालिक नियुक्ति, आवश्यक नियुक्ति और नन्दीसूत्र में भी हैं ।
१ ठाणं १० / ११४
२ तत्वार्थ राजवार्तिक - १ /२०
३ ....उजुदासो सालिभद्दक्खो । सुणक्खत्तो अभयो वि य धण्णो वरवारिसेण णंदगया | दो चिलायपुत्तो कत्तइयो जह तस अण्णे ।। - अंगपण्णत्ती - ५५
४ ठाणांग - १० / १११ ।
५ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास - भाग १, पृष्ठ २६३, प्रका० पार्श्वनाथ विद्या
श्रम शोध संस्थान, वाराणसी ।
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