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________________ ३४८ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा - कथाएँ तो इतनी बड़ी हैं कि उनके स्वरूप को देखते हुए, उन्हें संक्षिप्त महाकाव्य कहा जा सकता है । 'जातक' का अर्थ होता है - 'जन्म-सम्बन्धी कथाएँ' । तथागत ने अपने पूर्व जन्मों का, और घटनाओं का स्मरण करके, उन्हें अपने शिष्यों की सुनाया। बुद्ध प्राप्ति से पूर्व, कई योनियों में, उन्हें जन्म लेना पड़ा था। जिनमें मनुष्य, देवता, पशु-पक्षी आदि की योनियाँ रहीं । इन सव योनियों में रहकर भी, उनका 'बोधिसत्व' यथावस्थित रहा । 'बोधिसत्त्व ' का अर्थ होता है - 'बोधि के लिये उद्यमशील प्राणी (सत्त्व ) ' । इन्हीं कहानियों को कहकर, बुद्ध ने लोगों को अपना उपदेश दिया। ये कहानियां, ईसा पूर्व की पांचवीं शताब्दी से लेकर, ईसा के बाद की प्रथम द्वितीय शताब्दी तक रची गई । इनमें से अनेकों कहानियों का विकसित रूप रामायण और महाभारत में भी पाया जाता है । 1 , बुद्ध ने परम्परागत लौकिक गाथाओं को सुभाषितों के रूप में ग्रहण 'किया । 'विलारवत' जातक की एक गाथा में 'बिडालव्रत' का लक्षण दिया गया है । बुद्धकाल में, कोई ऐसी विडाल कथा प्रचलित रही होगी, जिसमें चूहों को धोखा देकर कोई बिडाल उन्हें खा जाता था । धर्म की आड़ में धोखा देने वाले कृत्य का यह प्रतीकात्मक आख्यान है । इस प्रकार के कार्य को, उस समय में 'बिडालव्रत' के रूप में पर्याप्त मान्यता दी जा चुकी होगी, ऐसा प्रतीत होता है । इसीलिए बुद्ध ने उसे जातक कथा में सम्मिलित करके अपना लिया । महाभारत, मनुस्मृति एवं विष्णु स्मृति' में भी, इस विडालव्रत का उल्लेख आया हैं । 3 'जातक' में जातकों की कुल संख्या ५४७ है । जिनमें, कुछ जातक १ जातक - प्रथम खंड - भूमिका - भदन्त आ० कौस० पृ. २४ २ यो वे धम्मं धजं कत्वा निगूलहो पापमाचरे । विस्सासयित्वा भूतानि विलार नाम तं वतं ॥ ३ महाभारत - ५-१६०-१३ ४ धर्मध्वजो सदा लुब्धादमिको लोकदम्भकः । वैडालव्रतिको ज्ञयो हिंस्रः सर्वाभिसंधिकः ।। * ५ विष्णुस्मृति - ६३-८ Jain Education International - विलारवत जातक - १२८ For Private & Personal Use Only - मनुस्मृति-अ. ४-१९४ www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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