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________________ आगमोत्तरकालीन कथा साहित्य ३४७ समग्र बौद्ध साहित्य में 'त्रिपिटक' प्रमुख हैं। ये त्रिपिटक हैंविनयपिटक, सुत्तपिटक और अभिधम्मपिटक । तथागत बुद्ध ने भिक्षुओं के आचरण को संयमित रखने के लिए जो नियम बनाये, उन्हीं की चर्चा 'विनयपिटक' में है । 'सुत्तपिटक' में, बुद्ध के उपदेशों और संवाद का संग्रह है । महाभारत के सुप्रसिद्ध यक्ष-युधिष्ठिर संवाद की तरह का यक्ष-युद्ध संवाद भी इसी संग्रह में है । इसी संग्रह में संकलित 'जातक' में बुद्ध के पूर्वजन्म के सदाचारों की अभिव्यक्ति करने वाली कथाएँ हैं। बौद्धधर्मकथाओं में इसका विशेष महत्व है। 'बुद्ध वंश' में, गौतम-बुद्ध से पूर्व के चौबीस बुद्धों का जीवन-चरित वर्णित है। इनमें समाहित कथा साहित्य बौद्ध-धर्म कथा का उत्कृष्ट साहित्य माना जा सकता है । 'अभिधम्मपिटक' में गौतम बुद्ध के उपदेशों के आधार पर, उनके दार्शनिक विचारों की व्यवस्था की 'विनयपिटक' के खन्दकों में, नियमों और कर्तव्यों के निर्देश के साथ-साथ अनेक आख्यान भी मिलते हैं । 'चुल्लवग्ग' में संवादात्मक और चरित सम्बन्धी अनेकों कथाएँ हैं। 'दीघनिकाय' 'मज्झिमनिकाय' और 'सुत्तपिटक' में भी, बहुत सारे आख्यान हैं। इसी तरह, 'विमानवत्थु', 'पेत्थवत्थु,' 'थेरी गाथा' और 'थेर गाथा' में भी कई तरह की कथाएँ हैं। इन सबको देखने से यह सहज ही अनुमान हो जाता है कि जातक-साहित्य, उपदेशपूर्ण मनोरंजक कथाओं/आख्यानों का विशाल भण्डार है। जिसके प्रभाव से, उत्तरवर्ती साहित्य भी अछूता नहीं रह सका। पालि त्रिपिटक की गाथाएँ बहुत प्राचीन हैं। उसमें प्रयुक्त छन्द, वाल्मीकि रामायण से भी प्राचीन हैं !1 कुछ गाथाएँ तो वैदिक युग की हैं । इन्हीं गाथाओं को स्पष्ट करने के लिए, जातक कथाएँ कही गई हैं। बौद्ध धर्म का यथार्थ-परिचय कराने के कारण सुत्तपिटक का साहित्यिक और ऐतिहासिक महत्व विशेष है । प्राचीन नीति कथाओं का संग्रह 'जातक' इसी में संकलित है । जातक, सुत्तपिटक के खुद्दकनिकाय का दसवाँ ग्रन्थ है । इसमें, अनेकों कहानियाँ हैं । कुछ छोटी हैं और कुछ बड़ी। कुछ १ ओल्डेन वर्ग--गुरुपूजाकौमुदी, पृष्ठ-१०, दीघनिकाय सम्पा. ह्रीस डेविडस एण्ड कारपेन्टर-वाल्यूम-I, इन्ट्रोडक्शन-पृष्ठ-८ । २ डॉ० विन्टरनित्ज-हिस्ट्री आफ इन्डियन लिट्रेचर-II, P. १२३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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