________________
३४६
जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
वाली भगवद्गीता तो आज के आध्यात्मिक जगत् का उत्कृष्ट कीर्तिस्तम्भ है। महाभारत की इन्हीं सब विलक्षण विशेषताओं को ध्यान में रखकर, महर्षि व्यास ने, अपना आशय व्यक्त करते समय स्पष्ट किया था- 'इस आख्यान को जाने बिना, जो पुरुष वेदाङ्ग तथा उपनिषदों को जान लेता है, वह व्यक्ति कभी भी अपने को विचक्षण नहीं कहलवा सकता।
भारतीय आख्यान साहित्य में, बौद्धधर्म के कथा साहित्य को भी महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । बौद्ध कथाओं को समाविष्ट करने वाला 'अवदान' साहित्य, अपना मौलिक अस्तित्व रखता है। 'अवदान' का अर्थ होता है-'महनीय कार्य की कहानी।' जिस तरह, पालि साहित्य में, महात्माबुद्ध के पूर्व-जन्मों के शोभन गुणों का वर्णन 'जातक' में हुआ है, उसी परिपाटो में, संस्कृत में विरचित यह 'अवदान' साहित्य है। इसमें 'अवदान शतक' सबसे प्राचीन संग्रह है। इसमें संकलित कथाएँ, तथागत बुद्ध के उन शोभन गुणों की वर्णना करती है, जिनके बल पर उन्हें बुद्धत्व को प्राप्ति हुई थी। इसकी कुछ कहानियों में, पापाचरण करने वाले व्यक्तियों को दी जाने वाली यातनाओं की भी विवेचना की गई है। इस संकलन के अंत:साक्ष्यों के आधार पर, इसका रचना-काल द्वितीय शतक माना जा सकता है । तोसरी शताब्दी में इसका चीनी अनुवाद हुआ था।
'दिव्यावदान' भी बौद्धकथाओं का एक संकलन है। यह ग्रन्थ, पूर्णतः गद्य में है। किन्तु, बीच-बीच में जो गाथायें इसमें दी गई हैं, वे, छन्दबद्ध तो हैं ही, उनमें आलंकारिकता भी अच्छे स्तर की है। ग्रन्थ में अशोक से सम्बन्धित कथाएँ हैं । इन कथाओं की ऐतिहासिकता और मनो. रंजकता तो असंदिग्ध है, परन्तु, इसकी भाषा को, पाली के सम्पर्क से मिश्रित होने के कारण, तथा कुछ स्थलों पर, भ्रष्ट-भाषा का भी प्रयोग होने के कारण, भाषा-शास्त्रियों ने, एक अलग प्रकार की धारा में प्रवाहित भाषा माना है । इसी तरह, इसमें संकलित कथाओं के कहने का ढंग भी अस्त-व्यस्त और बेतुका सा है।
१ यो विद्याच्चतुरो वेदान् साङ्गोपनिषदो द्विजः ।
न चाख्यानमिदं विद्यान्न व स स्याद्विचक्षणः ।। २ डॉ० कावेल व नील द्वारा सम्पादित-कैम्ब्रिज-१८६६, बौद्ध संस्कृत ग्रन्थमाला (दरभंगा) से प्रकाशित १९६२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org