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________________ ३४४ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा संवाद तथा याज्ञवल्क्य और उनकी पत्नी मैत्रेयी के बीच हुई दार्शनिक चर्चाएँ, भारतीय संस्कृति के ऊर्जस्विल आख्यानों में माने / गिने जाते हैं । इसी सन्दर्भ में, जब उत्तर वैदिक आख्यान साहित्य पर दृष्टिपात किया जाता है, तो रामायण और महाभारत, ये दोनों ही आर्ष काव्य, अपनी ओर ध्यान आकृष्ट कर लेते हैं । महाभारत का मुख्य प्रतिपाद्य, कौरवों और पाण्डवों के पारिवारिक कलह की राष्ट्रीय व्यापकता को विश्लेषित करना रहा है । यह युद्ध यद्यपि अठारह दिनों तक हो चला, किन्तु इसकी वर्णना में अठारह हजार श्लोकों का एक विशाल ग्रन्थ तैयार हो गया । सर्पदंश से, जब महाराज परीक्षित स्वर्गवासी हो जाते हैं, तब उनका पुत्र जनमेजय, सम्पूर्ण सर्पों के विनाश के लिए नागयज्ञ का अनुष्ठान करता है। इसी अवसर पर, उसे यह सारी कथा, वैशम्पायन ने सुनाई थी। वैशम्पायन ने स्वयं, यह कथा महर्षि व्यास से सुनी थी । इस कथा में, मुख्यकथा के अतिरिक्त अनेकों आख्यान, प्रसङ्गवशात् आये हैं । जिसमें शकुन्तलोपाख्यान, मत्स्योपाख्यान, रामाख्यान, गंगावतरण, ऋष्यशृङ्गकथा, महाराज शिवि और उनके पुत्र उशीनर की, तथा, सावित्र्युपाख्यान और जलोपाख्यान आदि, कुछ ऐसे आख्यान हैं, जिन्हें विश्व - साहित्य में एक विशेष गौरव की आँख से देखा / परखा / पढ़ा जाता है । इसी महाभारत में, श्रीकृष्ण का समग्र वृत्त, एक हजारों श्लोकों में गुम्फित है । इस अंश को 'हरिवंश कथा' के नाम से स्वतन्त्र रूप भी दिया गया है । भगवद्गीता का कृष्णार्जुन संवाद भी, महाभारत का ही एक महत्वपूर्ण भाग है । रामायण में, महाभारत जैसा, आख्यानों का विपुल भण्डार तो नहीं है, फिर भी, भारतीय काव्य-परम्परा का आद्य ग्रन्थ होने का, इसे गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है | आदि कवि महर्षि वाल्मीकि ने इसमें जिस रामकथा का वर्णन किया है, उससे भारत का प्रत्येक आबाल-वृद्ध भलीभाँति परिचित है । , रामायण में भी मुख्यकथा के अतिरिक्त अनेकों अवान्तर- कथायें जुड़ी हुई' प्रसङ्गवशात् आई हुई हैं। जिनमें, रावण का ब्रह्मा से वरदान पाना, राम के रूप में विष्णु का अवतरित होना, गंगावतरण, विश्वामित्र ओर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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