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आगमोत्तरकालीन कथा साहित्य
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माध्यम से सर्वशक्तिमान घोषित कर रहा है, ठीक, वैसे ही, शक्ति-स्वरूपा नारी के महिमामय गौरव का गुणगान करने में भी वैदिक ऋषि से चूक नहीं हुई। ऋग्वेद की ऋचा स्वयं बोल उठती है-'सूर्य उदय हो गया है, साथ ही, मेरा भाग्य भी उदय हुआ है। इस तथ्य से मैं अवगत हूँ। तभी तो, अपने पति पर प्रभावी बन गई हूँ। मैं स्वयं केतु हूँ, मूर्धा हूँ, और प्रभावुक हूँ । मेरा पति, मेरी बुद्धि के अनुरूप आचरण करेगा, मेरे पुत्र शत्रुघ्न हैं, मेरी पुत्री भ्राजमान है, मैं स्वयं विजयिनी हैं, पतिदेव पर, मेरे श्लोक प्रभावुक हैं । जिस हवि को देकर, इन्द्र सर्वोत्तम तेजस्वी बने थे, वह (सब) भी मैं कर चुकी हूँ । अब,मेरी कोई सौत नहीं रही, कोई शत्रु नहीं रहा ।1
यह है वैदिक नारी का सबल-स्वरूप । वह जीवन के हर केन्द्र पर, वह केन्द्र चाहे भोग का हो या योग का, युद्ध का हो या याग का; हर जगह वह अपने पति जैसी ही बलवती है, आत्मा की प्रज्ञा जैसी ।
ये हैं ऋग्वेद के कुछ अंश, जिनमें भारतीय साहित्य और संस्कृति की शाश्वत निधियां समाई हुई हैं । आज की भारतीयता का यही है आदि स्रोत, जिससे, अनगिनत कथाओं के द्वारा मानव-चेतना को ऊर्ध्वरेतस् बनाने के न जाने कितने रहस्य, आज भी अनुन्मीलित हुए पड़े हैं ।
ऐतरेय ब्राह्मण का शुनःशेप आख्यान, शत-पथ ब्राह्मण में दुष्यन्त पूत्र भरत और शकुन्तला से सम्बन्धित आख्यान, महाप्रलय की कथा में मनु का विवरण भी प्रसिद्ध आख्यानों में से है। बृहदारण्यकोपनिषद् में याज्ञवल्क्य के दार्शनिक वाद-विवाद, महाप्रलय में मनु का वर्णन भी प्रसिद्ध आख्यानों में से है। बृहदारण्यकोपनिषद् में याजवल्क्य और जनक के
१ उदसौ सूर्यो अगादुदयं मामको भगः ।
अहं तद् विद्वला पतिमभ्यसाक्षि विषासहिः ॥ अहं केतुरहं मूर्धाहमुग्रा विवाचनी । ममेदनु ऋतु पति: सेहानाया उपार्चरत् ।। मम पुत्रा शत्र हणोऽथो मे दुहिता विराट् । उताहमस्मि संजया पत्यो मे श्लोक उत्तमः ।। येनेन्द्रो हविषा कृत्व्यभवद् द्य म्न्युत्तमः । इदं तदक्रि देवा असपत्ना किलाभुवम् ।।
इत्यादि ।
-वही १०-१०६-१-४
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