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________________ २० जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा महाजन जातक' तथा महाभारत के शान्ति पर्व से होती है । इस प्रकार भ० महावीर के कथा साहित्य का अनुशीलन-परिशीलन करने से स्पष्ट परिज्ञात होता है कि ये कथा-कहानियाँ आदिकाल से ही एक सम्प्रदाय से दूसरे सम्प्रदाय में, एक देश से दूसरे देश में यात्रा करती रही हैं। कहानियों की यह विश्वयात्रा उनके शाश्वत और सुन्दर रूप की साक्षी दे रही है, जिस पर सदा ही जन-मानस मुग्ध होता रहा है। मूल आगम साहित्य में कथा-साहित्य का वर्गीकरण अर्थकथा, धर्मऔर कामकथा के रूप में किया गया है। परवर्ती साहित्य में विषय, पात्र, शैली और भाषा की दृष्टि से भेद-प्रभेद किए गए हैं । आचार्य हरिभद्र ने विषय की दृष्टि से अर्थकथा, कामकथा, धर्मकथा और मिश्रकथा, ये चार भेद किए हैं । विद्यादि द्वारा अर्थ प्राप्त करने की जो कथा है, वह अर्थकथा है। जिस शृंगारपूर्ण वर्णन को श्रवणकर हृदय में विकार भावनाएँ उदबुद्ध हों वह कामकथा है । और जिससे अर्थ व काम दोनों भावनाएँ जागृत हों, वह मिश्रकथा है । ये तीनों प्रकार की कथाएँ आध्यात्मिक अर्थात् संयमी जीवन को दूषित करने वाली होने से विकथा हैं ।' विकथा के स्त्रीकथा, १. महाजन जातक, ५३६ तथा सोनक जातक सं ५२६ । २. महाभारत, शान्ति पर्व अध्याय १७८ एवं २७६ ।। ३. तिविहा कहा पण्णत्ता तं जहा-अत्थक हा, धम्मकहा, कामकहा। -ठाणांग, ३ ठाणा, सूत्र १८६ ४. (क) अत्थक हा काम हा धम्मकहा चेव मीसिया य कहा। एत्तो एक्केक्कावि य णेगविहा होइ नायव्वा ।। -दशवैकालिक हारिभद्रीय वृत्ति गा० १८८ पृ० २१२ । (ख) समराइच्चकहा, याकोबी संस्करण, पृष्ठ २ । ५. विद्यादिभिरर्थस्तत्प्रधाना कथा अर्थकथा। -अभिधान राजेन्द्र कोश भाग ३, पृ० ४०२ । ६. अभिधान राजेन्द्र कोष। ७. (क) जो संजओ पमत्तो, रागद्दोसवसगओ परिकहेइ । सा उ विकहा पवयणे, पणता धीरपुरिसेहि ॥ -अभिधान राजेन्द्र कोष (ख) विरुद्धा विनष्टा वा कथा विकथा । -आचार्थ हरिभद्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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