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________________ आगमोत्तरकालीन कथा साहित्य ३३६ है—'ओ मेरी बेदर्द पत्नी ! ठहर, आ, कुछ बातें कर लें। हमने आज तक, खलकर बातें तक नहीं की; हमारे मन को आज तक ठण्डक नहीं मिली।1 उर्वशी उत्तर देती है - 'ओ पुरुरवस् ! क्या करूँगी तेरी इन बातों का ? (तेरे घर से तो) मैं ऐसे आ गई हूँ, जैसे कि सबसे पहलो उषा । ओ पुरुरवस् ! अब मैं, हवा को तरह (तेरी) पकड़ से बाहर हूँ।"2 प्रेम-पगे दो-चार क्षणों की भिक्षा मांगने वाले पुरुरवा की प्रार्थना का कैसा निर्मम तिरस्कार किया उर्वशी ने। फिर भी, दोनों की परस्पर बातें चलती रहीं। पुरुरवा, अनुनय पर अनुनय करता रहा, अपनी उर्वशो को याद दिलाता रहा तमाम पूरानी यादें, जिनके व्यामोह में उलझ कर, वह उसके घर वापिस चली चले । किन्तु, सब निरर्थक, सब निस्सार । ......"आखिर, तार-तार होकर टूटने लगा पुरुरवा का दिल । वह, सहन नहीं कर पाता है अपनी अन्तःपीड़ा को, और चिल्ला उठता है उन्मत्त जैसा-'ओ उर्वशी! तेरा यह प्रणयी, आज कहीं दूर चला जायेगा; इतनो दूर, जहाँ से वह कभी नहीं लौटेगा। तब, वह सो जायेगा मृत्यु की गोद में । और, वहाँ खूख्वार भेड़िये, उसे (आनन्द से) खायेंगे।' पुरुरवा के हताश/निराश स्नेह को प्रकट करने वाले ये शब्द, उर्वशी की स्नेहिलता की कसोटी बन जाते हैं । पुरुरवा के एक-एक शब्द ने, उर्वशी के अंतस को कचोट डाला । परिणाम, वही होता है,जो आज भी एक सच्चे प्रेमी और रूठी प्रणयिनी की परस्पर नोंक-झोंक का होता है। उर्वशी कहती है --'ओ पुरुरवस् ! मत भाग दूर, अपने प्राण भी १ हये जाये मनसा तिष्ठ घोरे वचांसि मिश्रा कृणवावहै नु । न नौ मन्त्रा अनुदितास एते मयस्करन् परतरे च नाहन् । -वही १०/६५/१ २ किमेता वाचा कृण्वा तवाहं प्राक्रमिषमुषसामग्रियेव । पुरुरवा पुनरस्तं परेहि दुरापना वात इवाहमस्मि ॥ __ -वही १०/६५/२ ३ सुदेवो अद्य प्रपदेदनावृत् परावतं परमां गन्तवा उ । अधा शयीत निऋतेरुपस्थेऽधनं वृका रभसासो अद्युः ॥ -वही १०/६५/१४ ४ पुरुरवो मा मृथा मा प्रपप्तो मा त्वा वृकासो अशिवास उक्षन् । नवै स्वणानि संख्यानि सन्ति सालावृकाणां हृदयान्येताः -वही १०/६५/१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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