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३३६ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
डोरा' । वस्तुतः शुल्व सूत्रों को भारतीय ज्यामिति का आद्य ग्रन्थ कहा जा सकता है!|
स्वरूप-भेद के कारण, 'वेद' एक होता हुआ भी, तीन प्रकार का माना गया है । ये प्रकार हैं - ऋक्, यजुस् और सामन् । अर्थवशात् पादों/ चरणों की व्यवस्था से युक्त छन्दोबद्ध मंत्रों की संज्ञा - 'ऋचा' या 'ऋक्' की गई है । इन ऋचाओं में से जो ऋचायें गीति के आधार पर गायी जाती हैं, उनकी संज्ञा 'सामन्' की गई है । इन दोनों से भिन्न, यज्ञ में उपयोगी गद्य-खण्डों को 'यजुस्' संज्ञा दी गई है । इस तरह, जो प्रार्थना / स्तुति परक छन्दोबद्ध ऋचाएँ हैं, उनके संकलित स्वरूप को 'ॠग्वेद संहिता', गेयात्मक ऋचाओं के संकलित स्वरूप को 'सामवेद संहिता' ओर गद्यात्मक युजुस् मंत्रों के संकलन को 'यजुर्वेद संहिता' कहा गया। इन तीनों को 'वेदत्रयी' के नाम से भी व्यवहृत किया जाता है । किन्तु आज वेदों की संख्या चार है । जिसमें अथर्ववेद नामक एक चौथे वेद को भी गिना जाता है । अथर्वन का अर्थ होता है - 'अग्नि का पुजारी' । इस अर्थ से यह आशय लिया गया है- अग्नि के प्रचण्ड और भैषज्य रूप से सम्बन्ध रखने वाले मंत्रों का जिस संहिता में संकलन है, वह 'अथर्ववेद' है ।
वेदों के सुप्रसिद्ध भाष्यकार महीधर की मान्यता है - ब्रह्मा से चली आ रही वेद- परम्परा को, महर्षि वेदव्यास ने ऋक्, यजु, साम और अथर्व नाम से चार भागों में बांटा, और उनका उपदेश क्रमशः पैल, वैशम्पायन, जैमिनि और सुमन्तु को दिया । बाद में मंत्रों के ग्रहण- अग्रहण, संकलन और उच्चारण विषयक भिन्नता के कारण वेद-संहिताओं की अनेकानेक शाखाएँ बन गईं, शाखाओं के साथ 'चरण' भी जुड़ गये । 'चरण' का अर्थ उस वटु समदाय से जुड़ा है, जो एक साथ मिल-बैठकर, अपनी परम्परागत शाखा से सम्बन्धित संहिता मंत्रों का ज्ञान / अध्ययन प्राप्त करता है ।
- जैमिनी सूत्र - २ / २ / ३५.
१ तेषां ऋक् यथार्थवशेन पाद-व्यवस्था ।
२ गीतिषु सामाख्या - जमिनी सूत्र - २/१/३६
३ शेषे यजुः शब्दः - - वही -- २/१/३७
४ तत्रादौ ब्रह्मपरम्परया प्राप्तं वेदं वेदव्यासो मन्दमतीन् मनुष्यान् विचिन्त्य कृणया चतुर्धा व्यस्य ऋग्यजुःसामाथर्वाश्चतुरो वेदान् पैल- वैशम्पायन - जैमिनी - सुमन्तुभ्यः क्रमाद् उपदिदेश ।
- यजुर्वेद : भाष्य
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