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आगमोत्तर कालीन कथा साहित्य
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आख्यान-साहित्य के प्रथम वर्ग 'धर्मकथा - साहित्य' के अन्तर्गत, ये ही सारी कथाएँ अन्तर्निहित मानी जायेंगी
इस तरह, 'धर्मकथा' को परिभाषित करते हुये, यह कहा जा सकता है - ' जो कथा, धर्म से सम्बन्ध रखती हो, वह 'धर्मकथा' है । और 'धर्म' वह है, जिसके द्वारा अभ्युदय और मोक्ष की प्राप्ति होती है । 1
'वेद' शब्द की व्युत्पत्ति ज्ञानार्थक 'विद्' धातु से होती है । जिसका 'अर्थ है - 'ज्ञान' | 'वेद' शब्द का व्यावहारिक उपयोग 'मंत्र' और 'ब्राह्मण' दोनों के लिये किया जाता है ।" 'मंत्र' में देवताओं की स्तुतियाँ हैं । इन स्तुतियों / मंत्रों का उपयोग यज्ञ आदि के अनुष्ठान में किया जाता है । यज्ञ के क्रिया-कलापों तथा उनके उद्देश्यों आशयों / प्रयोजनों की व्याख्या करने वाले मंत्र और ग्रन्थ, 'ब्राह्मण' कहे जाते हैं । 'ब्राह्मण' के तीन भेद हैंब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद | 'आरण्यक' ग्रन्थों में वानप्रस्थ-जीवन पद्धति की विवेचना की गई है । जबकि उपनिषदों में, मंत्रों की दार्शनिक व्याख्या के द्वारा ब्रह्म का प्रतिपादन किया गया है ।
ब्राह्मण ग्रन्थों में, यज्ञ आदि का विधान जटिल हो जाने के फलस्वरूप, उसे सरल और संक्षिप्त बनाने की जब आवश्यकता प्रतीत हुई, तब सरल सूत्र -शैली अपना कर जिन नवीन ग्रंथों में उसे प्रतिपादित किया गया, वे ग्रन्थ 'कल्पसूत्र' कहलाये । कल्पसूत्रों में यज्ञ-यागादि, विवाह, उपनयनादि कर्मों का क्रमबद्ध संक्षिप्त वर्णन है । कल्पसूत्र के भी चार भेद किये गये हैं- श्रीतसूत्र, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र और शुल्व सूत्र । श्रोत सूत्रों मेंयज्ञ-याग आदि के अनुष्ठान नियमों का, गृह्य सूत्रों में- उपनयन, विवाह, श्राद्ध आदि षोडश संस्कारों से सम्बद्ध निर्देशों का, धर्म-सूत्रों में - वर्णाश्रम धर्म का, विशेष कर राजधर्म का और शुल्व सूत्रों में- यज्ञ के लिए उपयुक्त स्थान निर्धारण, यज्ञ वेदि का आकार - प्रकार निर्धारण और उसके निर्माण की योजना आदि का वर्णन है । 'शुल्व' का अर्थ होता है - 'नापने का
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१. यतोऽभ्युदयनिःश्रेयसार्थसंसिद्धिरंजसा । सद्धर्मस्तन्निबद्धा या सा सद्धर्मकथा स्मृता ॥ - महापुराण- १/१२०
२. मंत्रब्राह्मणयोर्वेदनामधेयम् - आपस्तम्बः यज्ञ - परिभाषा - ३१
३. कल्पो वेदविहितानां कर्मणामानुपूर्वेण कल्पनाशास्त्रम् — ऋग्वेद- प्रातिशाख्य की वर्गद्वय वृत्ति - विष्णुमित्र
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