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आगमोत्तर कालीन कथा साहित्य
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भारतीय कथा साहित्य की वे उदात्त-भावनाएं हैं, जिनसे प्रेरणा पाकर, मानवीय जीवन के विभिन्न-व्यापारों को विशद विवेचनाओं का विविधताभरा सम्पूर्ण चित्रांकन किया गया है। इन शब्दचित्रों में सुख-दुःख, हर्षविषाद; संयोग-वियोग, आसक्ति-अनासक्ति, आदि मानव-मन की अन्तर्द्वन्द्वात्मक मनःस्थितियों की विचित्रता, और मानव-जीवन के अभ्युदय और अधःपतन से लेकर मानव-समूह की उत्क्रान्ति और संकान्ति जन्य गाथाओं के समस्यामूलक समाधानों का अनुभूतिपरक राग-रञ्जन समायोजित किया गया है।
भारतीय आख्यान/कथा साहित्य में, मानव-मन को आन्दोलित करती सांसारिक समस्याओं की विभीषिकाएँ और पारलौकिक उपलब्धियों की एषणाएँ कहीं मिलेंगी, तो कहीं-कहीं हार्दिक उदारता, बौद्धिक विशुद्धि, मानसिक मनोरंजन और आध्यात्मिक उत्कर्ष के विविध सोपानों पर उतरती, चढती, इठलाती भाव-प्रवणता के मनोहारी लास्य और नाटय की अनदेखी भंगिमाएँ भी सहज सुलभ होंगी। उन्मत्त गजराज, क्रुद्ध, वनराज, द्रुतगामी अश्व और हरिण समुदायों के क्रियाकलापों का बहुमुखी वर्णन कहीं मिलेगा, तो कहीं पर, कल-कल छल-छल करती सरिताओं के मधुर-स्वर में मुखरित पक्षी समुदाय का कर्ण-प्रिय कलरव भी दृष्टि पथ से बच नहीं पाता। सघन-वन, गिरि कान्तर और उपत्यकाओं की क्रोड में अनुगुञ्जित प्रकृति के मानवीयकरण का वर्णन स्वर, विश्वजनीन वाङमय के बीचोंबीच भारतीय आख्यान साहित्य की सर्वोत्कृष्टता का गुणगान करने से चूक नहीं पाता।
इस सबसे, यह स्पष्ट फलित होता है कि जीवन स्वरूप की सम्पूर्ण अभिव्यंजना, भारतीय कथा/आख्यान साहित्य में जितने व्यापक स्तर पर हई है, उससे कम, अचेतन स्वरूप की अभिव्यंजना की समग्रता, कहीं दिखलाई नहीं पड़ती। जड़ और चेतन की उभय-विध व्याख्याओं का समान-समादर, भारतीय कथा/आख्यान साहित्य में जैसा हआ है, वैसा. विश्व की दूसरी किसी भी भाषा के साहित्य में देखने को नहीं मिलता।
इन समग्र परिप्रेक्ष्यों को लक्ष्य करके, भारतीय आख्यान साहित्य का जब वर्गीकरण किया जाता है, तब इसे चार प्रमुख वर्गों में विभक्त हुआ हम पाते हैं । ये वर्ग हैं :
(१) धर्म कथा साहित्य (Religious Tale)
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