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आगमोत्तरकालीन कथा साहित्य ३२७
रहे । और राजभाषा के रूप में संस्कृत का व्यावहारिक उपयोग होता रहा । मनुस्मृति में वर्णित शासन व्यवस्था के अनुरूप 'काम्बोज' का शासन प्रबन्ध चला । आर्यावर्त की वर्णमाला और साहित्य के सम्पर्क के कारण यहाँ की क्षेत्रीय बोलियों ने भाषा का स्वरूप ग्रहण किया और धीरे-धीरे वे साहित्य की सर्जिकाएँ बन गईं। इस सारे के सारे साहित्य की मौलिकता पूर्णतः भारतीय थी । फलतः भारतीय (आर्यावर्तीय) वर्णमाला पर आधारित काम्बोज की 'मेर', चम्पा की 'चम्म' और जावा की 'कवि' भाषाओं
साहित्य में संस्कृत साहित्य से ग्रहण किया गया उपादान कल्याणकारी अवदान माना गया । रामायण और महाभारत के आख्यान जावा की कवि भाषा में आज भी विद्यमान है । बाली द्वीप में वैदिक मन्त्रों का उच्चारण और संध्या वन्दन आदि का अवशिष्ट किन्तु विकृत अंश आज भी देखा जा सकता है । मंगोलिया के मरुस्थल में भी भारतीय साहित्य पहुँचा । जिसका आंशिक अवशिष्ट वहाँ की भाषा में महाभारत से जुड़े अनेकों नाटकों के रूप में आज भी पाया जाता है ।
ये सारे साक्ष्य स्पष्ट करते हैं कि इन देशों के जनसाधारण की मूल भावनाओं को मुखर बनाने में संस्कृत साहित्य ने उचित माध्यम उन्हें प्रदान किये और उनके सामाजिक संगठन एवं व्यवस्था को नियमित / संयमित बनाकर उनकी बर्बरता से उन्हें मुक्त किया सभ्य और शिष्ट बनाया ।
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नैराश्य में से आशा का, विपत्ति में से सम्पत्ति का तथा दुःख में से सुख का उद्गम होना अवश्यम्भावी है । भारतीय तत्वज्ञान की आधारभूमि यही मान्यता है । व्यक्तित्व के विकास में जीवन का अपना निजी मूल्य है, महत्व है । फिर भी किसी मानव की वैयक्तिक पूर्णता में और उसकी अभिव्यक्ति में व्यक्ति का जीवन साधन मात्र ही ठहरता है । सुख और दुःख, समृद्धि और वृद्धि, राग और द्वेष, मंत्री और दुश्मनी के परस्पर संघर्ष से जो अलग-अलग प्रकार की परिस्थितियाँ वनती हैं, उन्हीं का मार्मिक अभिधान 'जीवन' है । इसकी समग्र अभिव्यंजना न तो दुःख का सर्वाङ्ग परित्याग कर देने पर सम्भव हो पाती है और न ही सुख का सर्वतोभावेन स्वीकार कर लेने पर उसकी पूर्ण व्याख्या की जा सकती है । इसीलिए, संस्कृत का कवि, साहित्यकार और दार्शनिक किसी एक पक्ष का चित्रण नहीं करता। क्योंकि वह भलीभांति जानता है कि यह जगत दुःखों का, संघर्षों का समरांगण है । किन्तु दुःख में से ही सुख का उद्गम होगा, संघर्ष में से ही सफलता आविष्कृत होगी, संग्राम ही विजय का शंखनाद
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