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३२४ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा आकर गौण ही नहीं बन जाते वरन् उनमें से कुछ के स्थान पर ब्रह्मा, विष्णु और शिव जैसे देवों की उपासना को अधिक महत्व मिल जाता हैं ।
तैत्तिरीय, काठक और मैत्रायणी संहिताओं से गद्य की जिस गरिमा का प्रवर्तन होता है वह गरिमा ब्राह्मण ग्रन्थों में प्रतिष्ठित होती हुई उपनिषद् काल तक अपना उदात्त स्वरूप ग्रहण कर लेती है । लौकिक साहित्य का उदय होते ही गद्य का इस हद तक ह्रास होने लगता है कि ज्योतिष और चिकित्सा जैसे वैज्ञानिक विषयों तक में छन्दोबद्ध पद्य-परम्परा अपना स्थान बना लेती है। व्याकरण और दर्शन के क्षेत्र में गद्य का अस्तित्व रहता जरूर है किन्तु यहां पर वैदिक गद्य जैसा प्रसाद सौन्दर्य विलीन हो जाता है । और उसका स्थान दुर्बोधता एवं दुरूहता ग्रहण कर लेती है।
साहित्यिक गद्य की गरिमा भी कथानकों और गद्य काव्यों में दृष्टिगोचर होती है । फिर भी, वैदिक गद्य को तुलना में इसमें कई एक न्यूनताएं साफ दिखलाई दे जाती हैं।
पद्य की भी जिस रचना तकनीक को लौकिक साहित्य में अंगीकार किया गया है वह वैदिक छन्द-तकनीक से ही प्रसूत प्रतीत होती है। पुराणों में और रामायण-महाभारत में सिर्फ 'श्लोक' की ही बहुलता है। परवर्ती लौकिक साहित्य में वर्णनीय विषय-वस्तु को लक्ष्य करके छोटे-बड़े कई प्रकार के नवीन छन्दों का प्रयोग किया गया है, जिनमें लघ-गुरु के विन्यास पर विशेष बल दिया गया है। कुल मिलाकर देखा जाये तो वैदिक पद्य साहित्य में जो स्थान गायत्रो, त्रिष्टुप, तथा जगती छन्दों के प्रचलन को मिला हुआ था वही स्थान उपजाति, वंशस्थ और वसन्ततिलका जैसे छन्द, लौकिक साहित्य में बना लेते हैं।
संस्कृत साहित्य में सिर्फ धर्मग्रन्थों की हो अधिकता है, ऐसी बात नहीं है । भौतिक जगत के साधनभूत 'अर्थ' और 'काग' के वर्णन की ओर भी लौकिक साहित्यकारों का ध्यान रहा है । अर्थशास्त्र का व्यापक अध्ययन करने के लिए और राजनीति का पण्डित बनने के लिये कौटिल्य का अकेला अर्थशास्त्र ही पर्याप्त है। इसके अलावा भी अर्थशास्त्र को लक्ष्य करके लिखा गया विशद साहित्य संस्कृत में मौजूद है। कामशास्त्र के रूप में लिखा गया वात्स्यायन का ग्रन्थ गृहस्थ जीवन के सुख-साधनों पर व्यापक प्रकाश डालता है। इसी के आधार पर कालान्तर में अनेकॊ ग्रन्थों की सर्जनाएँ हुई। 'मोक्ष' को लक्ष्य करके जितना विशाल साहित्य संस्कृत
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