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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
धर्मकथानुयोग महाग्रन्थ
श्वेताम्बर जैन आगम साहित्य में से एक सौ चौदह कथाओं का धर्मकथानुयोग में संकलन हुआ है। चक्रवर्ती षट्खण्डों पर विजय पताका फहराता है, वैसे ही इस ग्रन्थ में भी छह खण्ड हैं जो साधक के अन्तर्जीवन पर विजय वैजयन्ती फहराने के लिए हैं। इन खण्डों में निम्न आगमों से कथाएँ उटैंकित की गई हैं-आचारांग, सूत्रकुताँग, समवायांग, भगवती, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशांग, अन्तकृद्दशांग, अनुत्तरौपपातिक, विपाक, औपपातिक, राजप्रश्नीय, जीवाभिगम, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, निरयावलिया, कल्पावतंसिका, पुफ्फिया, पुफ्फचुलिया, वृष्णिदशा, उत्तराध्ययन, नन्दीसूत्र, दशाश्रु तस्कंध, कल्पसूत्र । आगम साहित्य में जहाँ भी कथायें प्राप्त हुई हैं या उस सम्बन्धी स्रोत उपलब्ध हुए हैं, उन सभी का यह श्रेष्ठ आकलन संकलन है।
प्राचीन आगमों की सूचियों के अनुसार आगमों में कथाओं का अक्षय कोष था। ज्ञातासूत्र में ही हजारों आख्यायिकाए थीं।
ज्ञाताधर्मकथा के दो श्रु तस्कंध हैं। प्रथम श्रु तस्कंध में उन्नीस कथाएँ हैं।
(१) उत्क्षिप्त ज्ञात-मेघकुमार (२) संघाट (३) अण्डक (४) कूर्म (२) शैलक (६) रोहिणी (७) मल्ली (८) माकंदी (6) चन्द्र (१०) दावद्रव वृक्ष (११) तुम्ब (१२) उदक (१३) मंडूक (१४) तेतलीपुत्र (१५) नन्दीफल (१६) अमरकंका (द्रौपदी) (१७) आकीर्ण (१८) सुषमा (१९) पुण्डरीककण्डरीक ।
दूसरे श्रुतस्कन्ध में अनेक कथायें हैं, वे इस प्रकार हैं :
(१) काली (२) राजी (३) रजनी (४) विद्युता (५) मेघा (६) शुभ (७) निसुंभा (८) रंभा (6) निरंभा (१०) मदणा (११) ईला (१२) सतेरा (१३) सौदामिनी (१४) इन्द्रा (१५) घना (१६) विद्युता (१७) रुचा (१८) सुरुचा (१९) रुचांशा (२०) रुचकावती (२१) रुचकान्ता (२२) रुचप्रभा (२३) कमला (२४) कमलप्रभा (२५) उत्पला (२६) सुदर्शना (२७) रूपवती (२८) बहुरूपा (२६) सुरूपा (३०) सुभगा (३१) पूर्णा (३२) बहुपुत्रिका (३३) उत्तमा (३४) भारिका (३५) पद्मा (३६) वसुमती (३७) कनका (३८)
१ यह बृहद् निबन्ध धर्म कथानुयोग भाग १ की प्रस्तावना रूप है।
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