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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
देवदत्ता
देवदत्ता 'दत्त' नाम के गृहपति की कन्या थी। 'वेश्रमणदत्त' राजा के पुत्र 'कुशनन्दो' के साथ उसका पाणिग्रहण हुआ। कुशनन्दी माता का परम भक्त था। वह तेल आदि से माता का मर्दन करता । उसकी हर प्रकार की सुख-सुविधा का ध्यान रखता पर देवदत्ता को यह बात पसन्द नहीं थी, इसीलिए रात्रि में सोती हुई सास को देवदत्ता ने मार दिया। राजा को ज्ञात होने पर उसने देवदत्ता के वध की आज्ञा दो। इस प्रकार वह पूर्वकृत पाप के कर्मों के कारण अनेक जन्मों तक दारुण वेदना का अनुभव करती रहेगी। (विपाक सूत्र श्रुतस्कन्ध, प्रथम अध्ययन ६)
अंज कथानक
___ अंजू 'धनदेव' सार्थवाह की कन्या थी। 'विजय' नामक राजा के साथ उसका पाणिग्रहण हुआ । गुह्य स्थान पर भयंकर शूल रोग पैदा होने से अंजू को अपार कष्ट हुआ । नाना प्रकार के उपचार करवाये, किन्तु रोग शान्त नहीं हुआ। जिससे उसके शरीर की कान्ति नष्ट हो गई । एक बार गणधर गौतम ने उसकी अस्थि-पंजरसम काया देखी तो भगवान से जिज्ञासा प्रस्तुत की। भगवान् महावीर ने उसके पूर्वजन्म का वर्णन करते हुए कहा-यह पूर्वभव में वेश्या थी। उस पाप के कारण ही इस जन्म में इसे कष्ट भोगना पड़ रहा है। इसके पश्चात् भी इसे अनेक जन्मों तक कष्ट भोगने पड़ेंगे।
इस प्रकार 'मृगापुत्र' से लेकर 'अंजू' कथानक तक दस कथायें दी गई हैं। इनका मूल आधार विपाक सूत्र का प्रथम तस्कन्ध है। इन दसों कथाओं के सभी पात्र ऐतिहासिक ही हों, यह बात नहीं है। किन्तु पौराणिक और प्राग ऐतिहासिक काल के पात्र हैं। इन सभी कथाओं में हिंसा. स्तेय और अब्रह्म के कटुक परिणाम प्रतिपादित किये गये हैं, पर असत्य और महापरिग्रह के परिणामों की चर्चा नहीं हुई है। शास्त्रकार का मूल उद्देश्य यही है कि साधक पाप से निवृत्त हों और शुभ भावों में परिणति करें तथा शुद्धता की ओर अग्रसर हों।
इस दृष्टि से गणधर गौतम की जिज्ञासा पर भगवान महावीर ने विविध प्रसंग बताकर जीवन का महान तथ्य उजागर किया । (विपाक सूत्र श्रु तस्कन्ध प्रथम, अध्ययन १०) ।
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