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उपनय कथाएँ
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उसने अपने पिता को मारकर स्वयं राज्य लेना चाहा और उस षड्यन्त्र में उसने एक नाई का सहयोग लिया। समय से पूर्व ही रहस्य खुल जाने से राजा ने अपने हत्यारे पुत्र नन्दीवर्द्धन को प्राणदण्ड दिया। पूर्वकृत कर्मों के कारण इसे अनेक जन्मों तक भयंकर दुःख भोगना पड़ेगा। कथा का सार यह है कि अपराधी व्यक्ति को भी निर्दयता से दण्ड नहीं देना चाहिए और दण्ड देकर आह्लादित नहीं होना चाहिए । (विपाक सूत्र श्रु तस्कन्ध प्रथम, अध्ययन ६)
उम्बरदत्त
उम्बरदत्त 'सागरदत्त' सार्थवाह का पुत्र था। पूर्वभव में वह एक कुशल वैद्य था तथा आयुर्वेदिक चिकित्सा में निष्णात था। वह रुग्ण व्यक्तियों को मद्य, मांस, मत्स्य भक्षण का उपदेश देता और कहता-इससे तुम्हें शीघ्र स्वास्थ्य लाभ होगा। इस पाप के फलस्वरूप वह छठी नरक में पैदा हुआ और वहाँ से मरकर यह 'उम्बरदत्त' हुआ है । दुराचार के सेवन से और पूर्वकृत पाप कर्मों के कारण इसके शरीर में सोलह महारोग पैदा हए । यहाँ से मरकर यह अनेक जन्मों में दुःख प्राप्त करेगा। इस प्रकार पूर्व में कृत पाप कर्मों का फल प्रत्येक जीव को भोगना ही पड़ता है-यह बात कथा के माध्यम से स्पष्ट की गई है। (विपाक सूत्र श्रुतस्कन्ध प्रथम, अध्ययन ७)।
शौरिकदत्त
शोरिकदत्त समुद्रगुप्त नामक एक धीवर का पुत्र था। शौरिकदत्त पूर्वभव में किसी राजा के यहाँ भोजन निर्माण का कार्य करता था। वह भोजन में विविध प्रकार के पशु-पक्षी व मत्स्य के मांस को तैयार कर स्वयं भी खाता और राजा को भी खिलाकर आनन्दित होता था जिसके फलस्वरूप वह मरकर छठी नरक में पैदा हुआ और वहां से निकल कर यह 'शौरिकदत्त' हुआ। यह एक दिन मछली को भूनकर खा रहा था कि मछली का काँटा इसके गले में चुभ गया। अनेक प्रयत्न करने पर भी वह काँटा नहीं निकला। भयंकर वेदना से कष्ट पाकर इसने आयु पूर्ण किया
और मरकर नरक आदि गतियों में परिभ्रमण करेगा। प्रस्तुत कथानक में भी पाप के फल का ही चित्रण किया गया है और यह सन्देश दिया गया है कि पाप के कार्यों से बचा जाय । (विपाक सूत्र १, अध्ययन ८)
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