SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा दान प्रकाश-यह कृति आठ प्रकाशों में विभक्त है। इसमें ३४० श्लोक प्रमाण हैं । इस कथाकृति के रचयिता तपागच्छ के विजयसेनसूरि के प्रशिष्य और सोमकुशलगणि के शिष्य कनककुशलगणि हैं जिन्होंने इसका प्रणयन संवत् १६५६ में किया था । उपदेशप्रासाद-इस विशाल कथाकोश में चौबीस स्तम्भ हैं।1 इसमें ३६१ व्याख्यान, ३४८ दृष्टान्त कथाएँ तथा नौ पर्व कथाएँ हैं। इस विस्तृत और महनीय कथाग्रंथ में से पर्व संदर्भित कथाओं का एक अलग से संग्रह प्रकाश में आया है जिसका नाम 'पर्व कथा संग्रह है। इस कथाकोश के रचयिता विजयलक्ष्मीसूरि है। धर्मकथा- अज्ञात लेखक की यह रचना संस्कृत की बृहत कथा कृति है। इसमें पन्द्रह कथाएँ संकलित हैं । इसका रचनाकाल ग्रंथ की प्रशस्ति में संवत् १३३६ निर्दिष्ट है। उपर्यङ्कित कथा संकलनों के अतिरिक्त देवमति उपाध्याय का 'एकादश गणधरचरित'; अज्ञात लेखक का 'युगप्रधान चरित'; सोमकीतिभट्टारक, सकलकीर्ति तथा भुवनकीर्ति की 'सप्तव्यसनकथा' कृतियाँ; कनक विजय की 'समिति गुप्ति कषायकथा'; दानविजय की 'कामकुम्भादि कथा संग्रह'; आवश्यक कथा संग्रह; हेमाचार्य का कथा संग्रह; आनंदसुन्दर का 'कथाकोश'; सर्वसुन्दर का 'कथासंग्रह'; तथा कथाकल्लोलिनी, कथा संचय, कथा समुच्चय आदि अनेक कथा संग्रह उल्लेखनीय हैं। जिनके अध्ययन-अन्वेषण-अनुशीलन से जैन कथा के विकास में अनेक महनीय तथ्य उजागर होते हैं। यह कथा यात्रा संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश से होती हई हिन्दी में अवतिरत हुई है। १. जैन धर्म प्रसारक सभा, ग्रन्थ सं० ३३-३६, भावनगर, १९१४-१९२३, वहीं से ५ भागों में गुजराती अनुवाद भी प्रकाशित हुआ है। २. चारित्र स्मारक ग्रन्थमाला, ग्रन्यांक ३४, अहमदाबाद, वि० सं० २००१; 'सौभाग्यपंचम्यादि पर्वकथा संग्रह' नाम से हिन्दी जैनागम प्रकाशक सुमति कार्यालय, कोटा से वि० सं० २००६ में प्रकाशित । ३. (i) जिनरत्नकोश, पृष्ठ १८८ । (ii) पाटन प्रन्थ भंडार सूची भाग १, १७५-१७६ । ४. विशेष अध्ययनार्थ श्री हरिषेणाचार्यकृत 'बृहत कथा कोश' की डा० उपाध्ये लिखित अंग्रेजी भूमिका देखिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy