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विहंगावलोकन १५ सम्यक्त्व कौमुदी-इस नाम की अनेक रचनाओं के अभिदर्शन होते हैंसम्यक्त्व कौमुदी कथानक, सम्यक्त्व कौमुदी कथा, सम्यक्त्व कौमुदी कथा कोश, सम्यक्त्व कौमुदी चरित्र और सम्यक्त्व कौमुदी ।। जैन धर्म के प्रति सच्ची श्रद्धा के सम्बन्ध में अनेक लघु कथाओं को इनमें संगृहीत किया गया है। विभिन्न कहानियाँ एक प्रधान कहानी के चौखटे के अन्तर्गत समाहित की गई हैं। यह लघु कथाकोश विभिन्न रचयिताओं द्वारा प्रणीत प्राप्त है। जिनमें सम्यक्त्व कौमुदी प्राचीनतम रचना है। इसका प्रणयन चौदहवीं शताब्दी में अपभ्रश कवि नागदेव ने किया है। इसमें तीन हजार श्लोक हैं जिनमें विभिन्न आठ कहानियाँ निर्दिष्ट हैं।
___धर्मकल्पद्र म-यह नौ पल्लवों में विभक्त बृहत् कथाकोश है। जिसमें ४८१४ श्लोक प्रमाण हैं। इस रोचक कथा संग्रह के रचयतिा मुनिसागर उपाध्याय के शिष्य उदयधर्म हैं जिन्होंने इसकी रचना आनन्दरत्नहरि के पट्टकाल में की थी । जर्मन विद्वान विण्टरनित्स इनका समय पन्द्रहवीं शती स्वीकारते हैं।
धर्मकल्पद्र म' नाम की अन्य रचनाएँ प्राप्त होती हैं। उनमें दो अज्ञातकर्तृक हैं, एक का नाम 'वीरदेशना' है। अन्य दो में से एक के रचयिता धर्मदेव हैं जो पूर्णिमागच्छ के थे और उन्होंने इसे संवत् १६६७ में रचा था। दूसरे का नाम 'परिग्रह प्रमाण' है और यह एक लघु प्राकृत कृति है । इसके रचियता धवलसार्थ (श्राद्ध-श्रावक) हैं। १. जिनरत्नकोश, पृष्ठ ४२४ । २. जैन साहित्य का बृहत् इतिहास, भाग ४, पृष्ठ २१०-२११ । ३. जैन ग्रंथ कार्यालय, हीराबाग, बम्बई से प्रकाशित, विषय की तुलना और कर्ता के निर्णय के लिए देखें-वर्णी अभिनन्दन गंथ में श्री राजकुमार जैन का
का लेख सम्यक्त्व कौमुदी के कर्ता', पृष्ठ ३७५-३७६ । ४. (i) जिनरत्नकोश, पृष्ठ १८८ (ii) देवचन्द्र लालभाई पुस्तकोद्धार, ग्रन्थांक
४० बम्बई, सं० १९७३ । (iii) हर्टल का लेख : जेड० डी० एम० जी०, भाग
६५ पृष्ठ ४२६ । ५. जैन साहित्य का बृहत् इतिहास, भाग ६, डा० गुलाबचन्द्र चौधरी, पृष्ठ
२६०-२६१ । ६. विण्टरनित्स, हिस्ट्री आफ इण्डिन लिटरेचर, भाग २, पृष्ठ ५४५ । ७. जिनरत्नकोश, पृष्ठ १८८-१८६ । ८. जैन साहित्य का बृहत् इतिहास, भाग ६, पृष्ठ २६१ ।
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