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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
अध्ययन-अनुशीलन से जैन कथा साहित्य पर विशेष प्रकाश पड़ता है । कतिपय अन्य कथाकोश भी उपलब्ध हुए हैं जिनका विवेचन यहाँ असंगत न होगा।
पुण्याश्रव कथाकोश-इस पुण्याश्रव कथाकोष' में पुण्यार्जन की हेतुभूत कथाओं का संग्रह है। इसमें ४५०० श्लोक प्रमाण हैं। यह संस्कृत गद्य में है जो छह अधिकारों में विभक्त है जिनमें कुल मिलाकर ५६ कथाएँ हैं । कहीं-कहीं कन्नड़ शैली के अभिदर्शन होते हैं। इसके रचयिता रामचन्द्र मुमुक्षु थे। इसका रचनाकाल बारहवीं शताब्दी का पूर्वार्ध सम्भावित है।
कुमारपाल-प्रतिबोध-कुमारवालपडिवोह अर्थात् कुमारपाल प्रतिबोध को 'जिनधर्म प्रतिबोध' और 'हेमकुमार चरित्र' भी कहते हैं। इसमें पाँच प्रस्ताव हैं । पाँचवाँ प्रस्ताव अपभ्रश तथा संस्कृत में है। यह प्रधानतया प्राकृत में प्रणीत गद्य-पद्यमयी कृति है। इसमें ५४ कहानियाँ संगृहीत हैं । इसके रचनाकार सोमप्रभाचार्य हैं और रचनाकाल संवत् १२४१ है।।
धर्माभ्युदय-इस रचना को 'संघपतिचरित्र' भी कहते हैं। इसमें पन्द्रह सर्ग हैं और ५२०० श्लोक प्रमाण हैं। महामात्य वस्तुपाल द्वारा की गई संघयात्रा को प्रसंग बनाकर धर्म के अयुभ्दय का सूचन करने वाली अनेक धार्मिक कथाओं का आकलन है। अनुष्टुप छन्द में इस प्रसंग को कथाबद्ध किया गया है। भाषा-शैली मुहावरेदार और आलंकारिक होते हुए भी सरस और प्रवहमान है। इस रचना के रचनाकार हैं उदयप्रभसूरि नागेन्द्रगच्छीय । इसका रचनाकाल संवत् १२७७ के बाद और संवत् १२६० के पूर्व का है। १. (i) जिनरत्नकोश, पृष्ठ २५२ ।
(ii) अपभ्रंश कवि रइधू ने 'पुण्णासव कहाकोसो' का प्रणयन किया है । २. जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर, १९६४ । ३. पुण्याश्रवकथाकोश पर लिखी भूमिका, पृष्ठ ३०-३२ । ४. (i) जिनरत्नकोश, पृष्ठ ६२ ।
(ii) विण्ट रनित्स, हिस्ट्री आफ इण्डियन लिटरेचर, भाग २, पृष्ठ ५७० । (iii) प्राकृत साहित्य का इतिहास, डा. जगदीशचन्द्र जैन, पृष्ठ
४६३-४७२। २. (i) जिनरत्नकोश, पृष्ठ १६५ । (i) सिन्धी जैन ग्रन्थमाला, ग्रंथांक ४, मुनि चतुरविजयजी और पुण्य
विजयजी द्वारा सम्पादित ; बम्बई १९४६ । ६. धर्मशर्माभ्युदय, भूमिका, पृष्ठ १४७ ।
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