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विहंगावलोकन १३ 'धर्मकथारत्नाकरोद्धार' या 'कथारत्नाकरोद्धार' नाम से भी पुकारा जाता है ।1 इसमें दो अध्याय हैं । इसमें ५५०० श्लोक प्रमाण हैं ।।
कथानककोश–इस ग्रंथ का नाम 'धम्मक्खाणयकोस' भी है। इसमें १४० प्राकृत गाथा हैं जिन पर संस्कृत में विनयचन्द्र की टीका है। पाटनभण्डार में इसकी हस्तलिखित प्रति हस्तगत होती है जिसमें वि० सं० ११६६ रचना या लिपि का समय दिया गया है। पाटन के भण्डार में 'कथाग्रंथ' नामक कथाकोश की ताड़पत्रीय प्रति भी महनीय है। दूसरे ताड़पत्रीय कथाकोश 'कथानुक्रमणिका' का भी उल्लेख मिलता है जिसका समय सं० ११६६ हैं।
कथासंग्रह-इसे 'अन्तरकथासंग्रह' या 'विनोदकथासंग्रह' भी कहते हैं।' यह सरल संस्कृत-गद्य में प्रणीत कथा ग्रंथ है। इसमें ८६ कथाएँ धार्मिक
और नैतिक शिक्षा की हैं और शेष १४ वाक्चातुरी और परिहास द्वारा मनोरंजन की हैं। इसकी शैली बिल्कुल बातचीत की है। संस्कृत, महाराष्ट्री और अपभ्रंश-पद्य इसमें प्रचुर रूप से उद्धृत हैं। इसके रचयिता राजशेखर सूरि हैं।
उपर्युक्त कथासंग्रह के अतिरिक्त जिनरत्नकोश में कुछ कथाकोशों का उल्लेख मिलता है-यथा-कथाकल्लोलिनी, कथाग्रंथ, कथाद्वात्रिंशिका (परमानन्द), कथाप्रबन्ध, कथाशतक, कथासमुच्चय, कथासंचय आदि । इनके
१. जिनरत्नकोश, पृष्ठ ६६ । २. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६, डा. गुलाबचन्द्र चौधरी;
पृष्ठ २५३ । ३. पाटन की हस्तलिखित प्रतियों की सूची, भाग १, गायकवाड़ ओ० सीरीज
सं० ७६, पृष्ठ ४२; जिनरत्नकोश, पृष्ठ ६५ । ४. जिनरत्नकोश, पृष्ठ ६५, ३६८ । ५. वही, पृष्ठ ६५। ६. जिनरत्नकोश, पृष्ठ ६५ । ७. जिनरत्नकोश, पृष्ठ ११ और ३५७ । ८. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६, डा. गुलाबचन्द्र चौधरी,
पृष्ठ २५३-२५४ । ६. उपर्युक्त कथासंग्रहों का परिचय बृहत्कथाकोश की प्रस्तावना में डा० उपाध्ये
द्वारा प्रस्तुत विवरण से उद्धृत है, पृष्ठ ६६-६७ ।
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