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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
कृत्य किये थे । जिसके फलस्वरूप उसे उस जन्म में सोलह महारोग हुए। वहाँ से मरकर यह नरक में गया। नरक से निकलकर यह 'मृगापुत्र' हुआ है । यहाँ भी यह पाप-फल भोग रहा है। इसके पश्चात् भी अनेक जन्मों तक यह पाप का फल भोगेगा।
प्रस्तुत कथा में यह बताया है-शासन या सत्ता प्राप्त होने पर जो उसका दुरुपयोग करता है,प्रजा पर अनुचित कर लादता है,रिश्वत लेता है, उसे इस पाप का फल इस प्रकार भोगना पड़ता है। आधुनिक वातावरण में पले-पुसे सत्ता के लोभी शासकों के लिए यह कथा सर्चलाइट की तरह उपयोगी है।
उज्झितक कथानक
गौ-मांसभक्षण, मद्यपान और विषयासक्ति के दुःखद फलों को बताने के लिए 'उज्झितक' कुमार की कथा दी गई है । 'उज्झितक' वाणिज्यग्राम के विजयमित्र सार्थवाह का पुत्र था। गौतम गणधर वाणिज्यग्राम में भिक्षा के लिए पधारे । उन्होंने अत्यधिक कोलाहल सुना। उन्हें मालूम हुआ कि राजा के अधिकारीगण किसी व्यक्ति को बाँधकर मारते-पीटते हए ले जा रहे हैं । गौतम ने भगवान् से प्रश्न किया-इसे इतना कष्ट क्यों दिया जा रहा है ? भगवान् ने उत्तर में कहा- हस्तिनापुर में 'भीम' नामक एक कूटग्राह अर्थात् पशुओं का तस्कर रहता था। उसकी पत्नी का नाम ‘उत्पला' था। जब वह गर्भवती हुई तब उसे गाय, बैल आदि के मांस खाने की इच्छा हुई। उसकी पूर्ति की गई। गायों को त्रास देने के कारण उसका नाम 'गोत्रास' रखा गया। वह जीवन भर गौ-मांस का उपयोग करता रहा। वहाँ से मरकर वाणिज्यग्राम' में 'विजयमित्र' के यहाँ पर यह 'उज्झितक' नाम का पुत्र हुआ। जब यह बड़ा हुआ तब इसके माता-पिता का देहान्त हो गया। नगर-रक्षक ने इसे घर से निकाल दिया । कुसंगति में पड़ने से द्यूतगृह, वेश्यागृह, मद्यगृह आदि में घूमने लगा। वाणिज्यग्राम में 'कामध्वजा' वेश्या थी । वह अत्यन्त रूपवती और कलाओं में दक्ष थी। उनके अनुपम सौन्दर्य पर उज्झितक आसक्त हो गया। कामध्वजा वेश्या राजा को भी प्रिय थी। अतः राजा ने अपने अनुचरों से उसे पकड़वाया और उसकी खूब मरम्मत की। उसे शूली पर चढ़ाया गया। पाप कर्म के कारण यह नरक आदि गतियों में परिभ्रमण करेगा। यह विषयासक्ति का कट परिणाम है।
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