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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
प्रोफेसर टाइमन ने अपनी जर्मन पुस्तक "बुद्ध और महावीर" में बाइबिल की मैथ्यू और लूक की कथा के साथ इस कथा की तुलना की है । वहाँ पर शालि के दानों के स्थान पर टेलेन्ट' शब्द का प्रयोग किया है । टेलेन्ट उस युग का सिक्का विशेष था । एक व्यक्ति ने विदेश जाते समय अपने तीन पुत्रों को दस-दस टेलेन्ट दिये थे । एक ने व्यापार के द्वारा उनकी अत्यधिक वृद्धि की, दूसरे पुत्र ने उन्हें जमीन में गाड़ दिये और तीसरे ने खर्च कर दिये । लौटने पर पिता प्रथम पुत्र पर बहुत ही प्रसन्न हुआ ।
आकर्ण: उत्तम जाति का अश्व
ज्ञाताधर्म कथा श्रुतस्कन्ध प्रथम, अध्ययन १७ में अश्वज्ञात का वर्णन है । जो साधक इन्द्रियों के वशवर्ती होकर अनुकूल विषयों की उपलब्धि होने पर उसमें लुब्ध हो जाते हैं, वे रागवृत्ति के कारण भव-भ्रमण करते हैं। उन्हें अनेक प्रकार की व्यथायें भी सहन करनी पड़ती हैं और जो उनमें आसक्त नहीं होते, वे सांसारिक यातनाओं से बच जाते हैं । जैसे— हस्तिशीर्ष नगर के कुछ व्यापारी नौका में बैठकर जा रहे थे । एकाएक तूफान से नौका डगमगाने लगी। निर्यामक को भी यह भान नहीं रहा कि नौकाएँ कहाँ जा रही हैं ? कुछ समय के पश्चात् तूफान शान्त हुआ । निर्यामक ने देखा - नौकाएँ कालिक द्वीप के किनारे जा लगी हैं । वहाँ उन्होंने होरेपन्ने स्वर्ण और चांदा की खदानें देखीं। उन्होंने वहाँ बढ़िया घोड़े भी देखे । उन्हें घोड़ों से कोई प्रयोजन नहीं था अपने नगर लौट आये। जब व्यापारोगण राजा उपहार लेकर पहुंचे तो राजा ने पूछा- तुमने कोई अद्भुत वस्तु देखी है क्या ? उन्होंने कालिक द्वीप के घोड़ों की बात कही । राजा के आदेश से व्यापारी पुनः कालिक पहुँचे । उन्होंने सुगन्धित और सुस्वादु पदार्थ चारों ओर बिखेर दिये । इन्द्रियों के वशीभूत होकर कुछ घोड़े उन पदार्थों का उपभोग करने के लिए उधर आये और वे उनके जाल में फँस गये । जो घोड़े उन पदार्थों के प्रति आकर्षित नहीं हुए वे अपने आपको मुक्त रख सके। इसी तरह जो साधक इन्द्रियों के अधीन हो जाता है, वह पथभ्रष्ट
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अतः पर्याप्त धन लेकर वे कनककेतु के पास बहुमूल्य
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१. टेलेन्ट ( talent ) शब्द का वास्तविक अर्थ बुद्धि तथा मानसिक विशिष्ट शक्ति होता है ।
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