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उपनय कथाएँ
जैन कथा साहित्य में इस प्रकार की अनेक कथाएँ हैं जिनसे किसी उपनय, रूपक या दृष्टान्त के माध्यम से उपदेश या शिक्षा दी गई है। इसमें कुछ प्राणि कथाएँ भी मिलती हैं तो कुछ रूपक भी हैं। ज्ञातासूत्र में इस प्रकार की उपनय कथाओं की बहुलता है । जिस पर यहाँ प्रकाश डाला है। विजय तस्कर कथा
साधना की प्रगति में सबसे बड़ी बाधा है-पर-पदार्थों के प्रति आसक्ति ! और जब तक आसक्ति है, तब तक आत्मानन्द का अनुभव नहीं होता । जब इन्द्रियों के विषयों में राग-द्वेष का विष मिल जाता है, तब समाधिभाव नष्ट हो जाता है। श्रमण अपने शरीर पर भी ममत्व न रखे। वह आहार और पानी के द्वारा शरीर का संपोषण किस प्रकार करता है ? यह दृष्टान्त के माध्यम से इस प्रकार बताया है।
राजगृह में धन्ना सार्थवाह था। उसकी पत्नी भद्रा थी। अनेक मनौतियों के पश्चात् उसके पुत्र हुआ। उसका नाम 'देवदत्त' रखा । एक बार पंथक देवदत्त को बहुमूल्य वस्त्राभूषणों से सुसज्जित कर खेलने ने लिए ले जा रहा था। देवदत्त बालकों के साथ खेलने लगा। उधर से 'विजय' नामक तस्कर चोर आया और देवदत्त को उठाकर चल दिया। उसने आभूषण उतार लिये और देवदत्त को कुएँ में फेंक दिया, जिससे उसके प्राण-पखेरू उड़ गये । पंथक अनुचर को तो ध्यान ही नहीं रहा । जब उसे ध्यान आया तो बालक नदारद था। उसने बहुत ढ ढा, जब वह नहीं मिला तो रोता-रोता घर पर आया । धन्ना सार्थवाह ने नगर-रक्षकों को सूचना दी। खोजने पर उन्हें अन्धकूप में बालक का शव मिला। पैरों के चिह्न को निहारते हए वे सघन झाड़ियों में छिपे हए विजय चोर के पास पहुँचे और उसे पकड़कर खूब मारा तथा कारागृह में बन्द कर दिया। साधारण से अपराध के लिए धन्ना सार्थवाह को भी एक दिन
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